मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कभी रुकना नहीं आया कभी चलना नहीं आया.
हमें हर एक साँचें में कभी ढलना नहीं आया.
बहारों में ये सहरा भी गुलिस्ताँ बन गया होता,
किसी दरिया समंदर को उसे छलना नहीं आया.
जो बाहर ख़ूब फूले हैं फले हैं पेड़ आमों के,
मेरे आँगन में उनको फूलना फलना नहीं आया.
जड़ें मज़बूत करने में हमारी ज़िंदगी बीती,
अमरबेलों के जैसे पेड़ पर पलना नहीं आया.
मुकम्मल इश्क़ की उससे मुझे उम्मीद क्या होती,
जिसे दो पल विरह की आग में जलना नहीं आया.
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार
आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ , सादर नमन
आदरणीय सालिक गणवीर जी सादर नमस्कार
आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ , सादर नमन
आदरणीय Rupam kumar -'मीत' जी सादर नमस्कार
आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ , सादर नमन
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। एक उम्दा ग़ज़ल पर मेरी कोटिश शुभकामनाएं निवेदित है। सादर
भाई बसंत कुमार शर्मा जी.
सादर अभिवादन
एक उम्दा ग़जल और ख़ास तौर पर चौथे शैर पर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए.
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बवाई ।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई से अभिभूत हूँ , आपने जो इस्लाह की है उसके अनुसार सुधार कर लेता हूँ , सादर नमन
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। कुछ टंकण त्रुटियों की ओर आपका ध्यानाकर्षण कराना चाहूँगा : हमें औरों के साँचें में कभी ढलना नहीं आया. इस मिसरे में औरों बहुवचन है इसलिए साँचें को साँचों कर लीजिए,
"बहारों में ये सेहरा भी गुलिस्तां बन गया होता, इस मिसरे में आया शब्द सेहरा ठीक नहीं है सहीह शब्द 'सहरा' यानि रेगिस्तान है, गुलिस्तां में चन्द्र बिन्दु होना चाहिए। उर्दू के शब्दों 'खूब', 'मजबूत' और 'जिन्दगी' में ख और ज पर नुक़्ता लगा लें। सादर।
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