मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहुत आसान है धन के नशे में चूर हो जाना,
बड़ा मुश्किल है दिल का प्यार से भरपूर हो जाना.
अगर वो चाहता कुछ और होना तो न था मुश्किल,
मगर मजनूँ को भाया इश्क में मशहूर हो जाना.
भले दो गज जमीं थी गॉंव में अपने मगर खुश थे,
नगर में रास कब आया हमें मजदूर हो जाना.
कभी तो आदमी को नारियल होना जरूरी है,
हमें तो पड़ गया महँगा मियाँ अंगूर हो जाना.
मेरी उल्फत के गुलशन को हिफाज़त की जरूरत है,
जिया में तुम छुपा रखना भले ही दूर हो जाना.
इबादत है मुहब्बत है यही मकसद यही मंजिल,
है तुमसे माँग मेरी माँग का सिंदूर हो जाना.
न हो आशीष वीणावादिनी का तो असम्भव है,
किसी का जायसी तुलसी कबीरा सूर हो जाना.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार
आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ ,
जी नुक्ते मेर्री आदत में अभी नहीं आये हैं, इसी तरह आपके मार्गदर्शन से सीख जाऊंगा, सादर स्नेह बनाये रखें , सादर नमन
आद0 बसंत कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन।अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई निवेदित करता हूँ। सादर
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। उर्दू अल्फा़ज़- इश्क़, गज़, ज़मीं, ख़ुश, मज़दूर, ज़रूरी, उल्फ़त, हिफा़ज़त ज़रूरत, मक़सद, मंज़िल में नुक़ते लगा लें। सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार , आपकी हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । बहुत अच्छी गजल हुई है । ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें ।
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