मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
इस जिग़र में प्यास बाकी है बुझाने की कहो,
झूमती काली घटा से छत पे आने की कहो.
है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,
गीत सावन के सुहाने आज गाने की कहो.
देखना गर चाहते हो इस जहाँ को ख़ुशनुमा,
प्यार का पक्का मकाँ दिल में बनाने की कहो.
पीर दिल को दे गया पर जो हुआ अच्छा हुआ,
अब हमें उस प्यार को मत भूल जाने की कहो.
प्यार की कीमत न की जब तक तुम्हारे पास था,
जा चुका मैं दूर अब मत लौट आने की कहो.
जो मिला माँ बाप से उसकी कोई कीमत नहीं,
कर्ज ये मुझसे कभी भी मत चुकाने की कहो.
गीत हो चाहे ग़ज़ल, है इल्तज़ा इतनी ‘बसंत’,
बात जो कुछ भी कहो तुम बस ठिकाने की कहो.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार , आपने बहुत बारीक़ नजर से मेरी ग़ज़ल को देखा और तरमीम की, दिल से शुक्रगुजार हूँ आपका, नुक्ते की गलतियां मुझसे कस्र हो जाती हैं, मैं सीखने का पूरा प्रयास कर रहा हूँ, इसी तरह मार्गदर्शन करते रहिये यही इल्तिजा है।
आदरणीय सालिक गणवीर जी सादर नमस्कार - आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी सादर नमस्कार - आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार - आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।
//है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,// ये मिसरा बह्र में नहीं है, चाहें तो इसे यूँ कर सकते हैं :
"है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा आफ़रीं,, इसके इलावा चन्द टंकण त्रुटियों की ओर आपका ध्यानाकर्षण कराना चाहूँगा :
मतले के मिसरा ए ऊला में लफ़्ज़ 'जिगर' से नुक़्ता हटा लें और लफ़्ज़ बाकी में क के नीचे नुक़्ता लगा लें।
दूसरे शैर के मिसरा ए ऊला में लफ़्ज़ 'खूबसूरत' में ख के नीचे नुक़्ता लगा लें।
पाँचवें और छटे शैर में लफ़्ज़ 'कीमत' में क के नीचे नुक़्ता लगा लें, छटे शैर में लफ़्ज़ 'कर्ज' को 'क़र्ज़' कर लें।
मक़ते के ऊला में आये लफ़्ज़ 'इल्तज़ा' से नुक़्ता हटा कर 'इल्तिजा' कर लें।
बसंत कुमार शर्मा जी, जनाब ये सब मेरी पाठकीय राय मात्र हैं मैं भी सीख ही रहा हूंँ। अगर आप को उक्त सुझाव उचित न लगें तो आप उक्त टिप्पणी नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा। सादर।
भाई बसंत कुमार शर्मा जी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकार करें.
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा साहिब, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर आपको दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । वर्षा रितु के हिसाब से उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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