राखी
"अभी आ जाएगी तुम्हारी लालची बहन हमारा बजट ख़राब करने,क्या उसे नही पता? लोकडाउन के कारण हमारी आर्थिक हालत ठीक नहीं है? अब उसका बोझ भी उठाना पड़ेगा और राखी का उपहार भी देना पड़ेगा ,"भाभी मेरे भाई से कह रही थी।
"अरे मीनू ऐसे क्यों बोल रही हो? दीदी बहुत समझदार हैं ।इस बार उन्हें हम कोई घर में रखा कोई सूट या साड़ी दे देंगे।"
"मेरी बात ध्यान से सुन लो ! मैं अपना कोई सूट उन्हें नहीं देने वाली,वो मुझे अपने मायके से मिले हैं।" मेरा भाई लाचार सा खड़ा ये सब सुन रहा था। मैं दरवाजे पर खड़ी हूँ इस बात से दोनों अनजान थे ।
" बुआ जी आ गईं !" मेरा भतीजा ख़ुशी से मेरे पास दौड़ते हुए आया और बोला।
"दीदी नमस्ते !आप कब आईं?" भाभी थोड़ा झेंपते हुए बोलीं।
"तभी जब आप भैया से मेरे बारे में बात कर रहीं थीं।"अब तो उनकी शक्ल देखने वाली थी।
"आपके लिए चाय लेकर आती हूँ"ये कहकर वो जाने लगीं पर मैंने उन्हें अपने पास सोफ़े पर बिठा लिया।मैने कहा " देखो भाभी !मैं किसी लालच में यहाँ नहीं आती ;मैं तो अपने मम्मी-पापा व आप सबसे मिलने आती हूँ और मैं आती हूँ अपने बचपन की यादों को ताज़ा करने ,अपनी सहेलियों से मिलने जिनके साथ मैने बचपन में गुड़िया गुड्डो की शादियाँ रचाया करती थी । बहुत पुराना रिश्ता है मेरा इन गलियों से ; यहाँ आकर अपने बचपन को दोबारा से जी लेती हूँ ,एक दो दिन ही सही अपनी सभी परेशानियों को भूल जाती हूँ। यहाँ आकर मुझमे एक नई ऊर्जा आ जाती है।हम भाई बहन की वो खट्टी मीठी लड़ाई याद आती है जो ज़्यादातर बिना बात के ही हो जाया करती थी।"
"चलो भाभी ! हम आज से एक नई परम्परा की शुरुआत करें।आज से हम किसी भी तरह की औपचारिकता में नहीं पड़ेगें ।राखी पर मैं भईया को सिर्फ़ मौली बांँधूगी और कोई मिठाई भी नहीं लाऊंँगी , मुँह मीठा तो गुड़ से भी हो सकता है।राखी और भाई दूज पर आपसे कोई उपहार नहीं लूंगी।"
ये सब सुनकर भाभी ने मुझे गले लगाया और रोने लगीं , उनके साथ साथ मेरी आँखों से भी अश्रुधारा बह निकली।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
लघुकथा का विषय अच्छा है इसीलिये मुझे लगता है भावों की कसौटी पे और कसा जा सकता है।
आद0 Madhu Passi जी सादर अभिवादन
अच्छी भावपूर्ण और सन्देश देती लघुकथा पर आपको बधाई देता हूँ
आदरणीया Madhu Passi 'महक' साहिबा, आपकी लघुकथा बहुत मौज़ूँ और मानीखेज़ लगी, इस पर आपको दिली दाद और मुबारकबाद पेश करता हूँ।
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