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नाज़ नख़रों का अंदाज़ अच्छा लगा
इस मुहब्बत का आग़ाज़ अच्छा लगा-1
सोचा था हम न देखेंगे मुड़ के कभी
पर बुलाने का अंदाज़ अच्छा लगा-2
बेदख़ल दिल से हमको न करना कभी
धड़कनों का तेरा साज़ अच्छा लगा-3
मेरी ख़ालिस मुहब्बत को ठुकरा के क्यूँ
यार तुमको दग़ाबाज़ अच्छा लगा-4
वाहवाही करें क्यूँ न महफ़िल में हम
"सरफ़राज़" इक सुख़न-साज़ अच्छा लगा-5
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सरफराज खुशालगढ़ी जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
मुहतरम अमीरुद्दीन साहब नवाज़िश के लिये बहुत शुक्रियः सलामत रहें
मुहतरम जनाब सरफ़राज़ साहिब आदाब, बहतरीन ग़ज़ल से अपनी मौजूदगी दर्ज करने के लिए आपको दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
आदरणीय रवि भाई बहुत बहुत शुक्रियः नवाज़िश
आदरणीय Sarfaraz kushalgarhi भाई, इस सुंदर ग़ज़ल से अपने ओबीओ के सफ़र का आग़ाज़ करने पर आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
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