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ये जिंदगी का हसीन लमहा

(12122)×4

ये ज़िंदगी का हसीन लमहा

गुजर गया फिर तो क्या करोगी
जो जिंदगी के इधर खड़ा है

उधर गया फिर तो क्या करोगी

तुम्हें सँवरने का हक दिया है

वो कोई पत्थर का तो नहीं है
लगाये फिरती हो जिसको ठोकर

बिखर गया फिर तो क्या करोगी

कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है

मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत
"वो आँधियों में  उखड़ जड़ों से"

शज़र गया फिर तो क्या करोगी

जिसे अनायास कोसती हो

छिपाए बैठा है पीर सारी
तुम्हारी नज़रों से गिर के आखिर

वो मर गया फिर तो क्या करोगी

किवाड़ दिल के लगा रखी हो

नज़र की खिड़की खुली हुई है
कोई निग़ाहों से सीधे दिल में

उतर गया फिर तो क्या करोगी

तू जिसकी उल्फ़त में जी रही है

कुछ उसकी नीयत भली नहीं है
वो खा के कसमें दिखा के सपने

मुकर गया फिर तो क्या करोगी

आशीष यादव

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by आशीष यादव on September 3, 2020 at 7:13am

आदरणीया डिम्पल शर्मा जी हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया।

Comment by आशीष यादव on September 3, 2020 at 7:13am

आदरणीय उस्ताद समर कबीर साहब आदाब, आपकी नेक सलाह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। मैंने इसे नोट कर लिया है। आपसे अन्य रचनाओ पर भी ऐसी ही अपेक्षा है। सादर।

Comment by आशीष यादव on September 3, 2020 at 7:10am

आदरणीय उस्ताद अमीरुद्दीन अमीर सर, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया। आपके कहे अनुसार मैंने शिल्प में परिवर्तन कर लिया है। 

उम्मीद है कि ऐसे ही आप अन्य रचनाओं पर भी मार्गदर्शन देते रहेंगे।

Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:08pm

आदरणीय आशीष यादव जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on August 28, 2020 at 6:26pm

जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'किवाड़ दिल के लगा रखी हो

नज़र की खिड़की खुली हुई है'

इस मिसरे को यूँ करना उचित होगा:-

'किवाड़ दिल के लगा रखे हैं

नज़र की खिड़की खुली हुई है'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 25, 2020 at 6:41pm

जनाब आशीष यादव जी आदाब, शानदार ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।

//वो आँधियों में जड़ो से कटकर शज़र गया फिर तो क्या करोगी//  इस मिसरे का शिल्प संवारने का प्रयास कर सकते हैं :

   "वो आँधियों में उखड़ जडों से शजर गया फिर तो क्या करोगी"    सादर। 

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