एक गजल तेरे होठों पर लिख सकता था
इसकी टपक रही लाली पर बिक सकता था
किंतु सामने जब शहीद की पीर पुकारे
जान वतन पर देने वाला वीर पुकारे
जिसने भाई, लाल, कंत कुर्बान किये हों
सूख चुकी उनकी आँखों का नीर पुकारे
कैसे उन क़ातिल मुस्कानों पर बिकता
कैसे कोमल नाजुक होठों पर लिखता
एक गजल तेरी आँखों पर लिख सकता था
चंचल चितवन सी कमान पर बिक सकता था
पर कौरव-पांडव दल आँखें मींच रहा हो
चीर दुःशासन द्रुपद-सुता की खीँच रहा हो
हाथ जोड़ कर कहीं दामिनी बिलख रही हो
और दरिंदा वहशी उसको भींच रहा हो
तब बोलो कैसे आलिंगन पर बिकता
कैसे काजल वाली आँखों पर लिखता
एक गजल तेरे गालों पर लिख सकता था
हुस्न नजाकत नाज अदा पर बिक सकता था
किन्तु जहाँ नेता जनता को भरमाते हों
धर्मों का धंधा करने वाले भाते हों
सबके पेटों को भरने वाले जब खुद ही
घुटने डाल पेट में भूखे सो जाते हों
तुम बोलो मैं कैसे चुम्बन पर बिकता
कैसे डिम्पल वाले गालों पर लिखता
एक गजल तेरी चालों पर लिख सकता था
लटकन मटकन झटकन पर भी बिक सकता था
किन्तु जहाँ हलकू वादों पर ही जीता हो
आज तलक भी झूरी का दामन रीता हो
झूठे सत्ता की सीढ़ी चढ़ते जाते हों
सच्चा घूँट ज़हालत के कड़वे पीता हो
कैसे मदहोशी के स्पर्शों पर बिकता
कैसे हिरनी वाली चालों पर लिखता
आशीष यादव
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय उस्ताद समर कबीर साहेब, आपको यह रचना अच्छी लगी तो मेरा लेखन सफल हो गया। हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय श्री Harash Mahajan सर हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
वाह आ0 आशीष यादव जी बहुत सुुंदर रचना ।
सादर ।
आदरणीया डिम्पल शर्मा जी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय श्री अमीरुद्दीन अमीर साहब हौसला अफजाई के बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय आशीष यादव जी नमस्ते, बहुत खुबसूरत रचना हुई है बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
जनाब आशीष यादव जी आदाब, शानदार कविता की रचना हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
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