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हवाओं के झोंके....(गजल)

122 122 122 12

 हवाओं के' झोंके मचलने लगे,

अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1

दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2

बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3

कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4

नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5

"मौलिक व अप्रकाशित"
@

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Comment by Manan Kumar singh on September 2, 2020 at 4:29pm

दिली आभार आदरणीया डिंपल जी।

Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:01pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, ग़ज़ल का दुसरा शेर बहुत कमाल हुआ है।

Comment by Manan Kumar singh on August 30, 2020 at 9:38am

आदरणीय अमीर जी,शुक्रिया एवं नमस्ते। आपके द्वारा की गई हौसला आफजाई मेरे लिए संबल है।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 30, 2020 at 9:32am

मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है। दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।

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