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हवाओं के' झोंके मचलने लगे,
अदाओं के' आंचल सरकने लगे।1
दबे दिल के' कोने में ' जो थे कभी
परत दर परत राज खुलने लगे।2
बसाए फिरे जो जिगर में कभी
हकीकत बताने से बचने लगे।3
कहा था कभी, हम न होंगे जुदा,
मिले ही कहां,अब वो ' कहने लगे।4
नज़ाकत भरे थे जो लमहे कभी,
शरारत जदा आज डंसने लगे।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
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Comment
दिली आभार आदरणीया डिंपल जी।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय, ग़ज़ल का दुसरा शेर बहुत कमाल हुआ है।
आदरणीय अमीर जी,शुक्रिया एवं नमस्ते। आपके द्वारा की गई हौसला आफजाई मेरे लिए संबल है।
मुहतरम जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है। दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
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