खेत मन का एक जोता हमने बाजी मार ली
तन का सौदा रोक डाला हमने बाजी मार ली।१।
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रेत पर लिख करके गुस्सा हमने बाजी मार ली
पत्थरों पर प्यार साधा हमने बाजी मार ली।२।
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हर नदी की हर लहर पर पार जाना लिख दिया
मोड़ डाला रुख हवा का हमने बाजी मार ली।३।
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छोड़ आये चाँद आधा यूँ सितारों के लिए
किन्तु पहलू में है पूरा हमने बाजी मार ली।४।
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त्याग आया हमको सूरज रात के पहलू में जब
जुगनुओं से करके नाता हमने बाजी मार ली।५।
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चाहे नदिया ने लिखी थी प्यास हिस्से में बहुत
किन्तु पीकर ओस ताजा हमने बाजी मार ली।६।
(रचना : दिसम्बर २०१२ )
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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