२२२२/२२२२/२२२२/२२२
झण्डे बैनर टँगे हुए हैं और निशसतें ख़ाली हैं
भाषण देने वाले नेता सारे यार मवाली हैं
**
इन के दिन की बातें छोड़ो रातें तक मतवाली हैं
जनसेवक का धार विशेषण रहते बनकर माली हैं
**
कहते तो हैं नित्य ग़रीबी यार हटाएँगे लेकिन
जन के हाथों थमी थालियाँ देखो अबतक ख़ाली हैं
**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
**
काम न करते कभी सदन में देश को उन्नत करने का
किन्तु ख़ज़ाने इन के कारण सारे यारो ख़ाली हैं
**
श्वेत लिबासों में रहते पर मन की कालिख नहीं गयी
हर नेता ने जनधन पर नित काली नज़रें डाली हैं
--
(*निशसतें = बैठने की जगह)
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आ. भाई तेजवीर जी जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए आभार । आपको गजल अच्छी लगी लेखन सफल हुआ। सादर..
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।**
देश की जनता तरस रही है देखो एक निवाले को
पर ख़र्चे में इन की आदतें हैराँ करने वाली हैं
कृपया बधाई, स्वीकार करे, पढ़े।
समसामयिक परिदृश्य पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बंधुवर, लक्ष्मण धामी जी, बझाई स्वीकार करे। दोनों मतले विशेष रूप से सीधे दिल पर दस्तक देते हैं।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online