For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिस्मार दिल का ये दर-ओ-दीवार हो गया

बह्र:- 221 2121 1221 212

मिस्मार दिल का ये दर-ओ-दीवार हो गया
मुद्दत हुई तो यार का दीदार हो गया

वो जो चला गया है मेरा शह्र छोड़ कर
लगता है ऐसा मुझको मैं बीमार हो गया

बेमोल ही रहे न किया ज़िंदगी से ग़म
तूने छुआ मुझे तो मैं दीनार हो गया

था मर्ज़ ऐसा जिसकी नहीं थी दवा कोई
तू हाथ थाम कर मेरा तीमार हो गया

तूने गले लगाया "रिया" को मेरे ख़ुदा
लगता है जैसे क़द मेरा मीनार हो गया

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 3, 2020 at 8:38pm

बढ़िया भावपूर्ण ग़ज़ल कही है...बधाई आपको

Comment by Richa Yadav on November 1, 2020 at 9:09pm
आ. समर कबीर जी,

बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

सादर।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2020 at 11:49am


//ऐसा मरज़ हुआ कि दवा ही न हो सकी//

ये मिसरा ठीक है ,प्रयासरत रहें ।

Comment by Richa Yadav on November 1, 2020 at 7:43am
आ. समर कबीर जी,

बहुत बहुत धन्यवाद आपका, वक़्त दिया आपने और त्रुटि बताई
ऐसे ही मार्गदर्शन करते करिये आभार आपका।

सुधार किया है कृपया बताइये क्या अब ठीक है।?

ऐसा मरज़ हुआ कि दवा ही न हो सकी
Comment by Samar kabeer on October 31, 2020 at 3:44pm

मुहतरमा ऋचा जी आदाब, ओबीओ पटल पर आपका स्वागत है ।

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

बहुत कुछ जनाब निलेश जी बता चुके हैं,और आपने उसका संज्ञान भी लिया है,कुछ बातें में आपको बताना चाहूँगा ।

'था मर्ज़ ऐसा जिसकी नहीं थी दवा कोई
तू हाथ थाम कर मेरा तीमार हो गया'

इस शैर के ऊला में 'मर्ज़' ग़लत है,सहीह शब्द है "मरज़" इसका वज़्न 12 है ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2020 at 9:10am

आ. ऋचा जी,
निरंतर प्रयास करते रहें.. अच्छी ग़ज़लें पढ़ें और उन की शेर कहने की तरकीब का मनन करें..
सादर  

Comment by Richa Yadav on October 31, 2020 at 8:28am
आ. नीलेश जी,

बहुत बहुत आभार आपका कि अपने वक़्त दिया मेरी रचना पढ़ी और गलतियों से अवगत कराया।मैं नहीं मानती कि मैं perfect हूँ सभी से निवेदन है कोई भी गलती हो ज़रूर मार्ग दर्शन करिये सीख रही हूँ और ऐसे ही सीखूंगी।

अपने जो बताया समझ आया मुझे, कुछ बदलाव किए हैं plz आप देखिये क्या ये ठीक रहेगा?
एक बार फिर आपका
बहुत बहुत धन्यवाद बताने के लिए।
सादर।


दर आपका मेरे लिए दीवार हो गया
थी मुश्किलें मगर तेरा दीदार हो गया
बेमोल भी न बिक सके बाजार में कभी
तूने छुआ मुझे तो मैं दीनार हो गया।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2020 at 7:38am

आ. ऋचा जी,

अस्ल में आजकल किसी की रचना पर इस्लाह करने से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक हो चली है क्यूंकि कई रचनाकार स्वयं को परफेक्ट मानते हैं और सिर्फ अपना कलाम अपने ही तरीके से पेश करने में विश्वास रखते हैं चाहे उस में कई त्रुटियां हों।

ख़ैर,, आपने अनुमति दी है तो मैं कुछ अर्ज़ करता हूँ,,

दर ओ दीवार यानी दरवाज़ा और दीवार दो वस्तुएं हैं अतः हो गया कि जगह हो गए आना चाहिए,, इससे बचने के लिए वहां क़ाफ़िया मिस्मार लिया जा सकता है लेकिन मिसरे की तरक़ीब बदलनी पड़ेगी।

फिर मतले के ऊला और सानी में अंतरसंबंध यानी रब्त नहीं है।

तीसरे शेर में ऊला में रहे और सानी में हो गया से शुतुरगुरबा हो रहा है।

इन्ही सब छोटी छोटी बातों से रचना का स्वरूप निखरता है।

सादर

Comment by Richa Yadav on October 30, 2020 at 10:15pm

आ. नीलेश जी नमस्कार

मैं इस मंच पर नई हूँ और इस मंच से सीखना चाहती हूँ, पढ़ना चाहती हूँ, लिखना चाहती हूँ,
आप गुरुजनों का मार्गदर्शन मिलता रहे, ज़रूर बताइये त्रुटियाँ‍।

सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 30, 2020 at 9:38pm

आ. ऋचा जी,
आपको पहली बार पढ़ रहा हूँ. मंच पर स्वागत है. यदि कमेंट के माध्यम से आपकी सहमती मिलें तो आपकी ग़ज़ल के गुण दोषों का विव्चं करूं..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service