जब मैं कल रात ड्यूटी से घर आई , तो महाभारत घर में पहले से ही हमेशा की तरह चल रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब घर वालों ने अपनी मर्जी से मेरी शादी की, मेरी राय तक नहीं पूछी गई l क्यूंकि मेरे जैसी जो पहले ही तीस पार कर चुकी होl उन से भला कौन राय लेता l मैं तो बोझ थी, जिसको निपटाना चाहा l जानलेवा बीमारी ने शादी के कुछ महीनों बाद ही उनको मुझसे जब दूर कर दिया। तब मुझे लगा, अब मुझे उस घर में एक अजनबी की तरह नहीं रहना चाहिए, मैं जल्दी से उनका बोझ कम करना चाहा। उनके जाने के बाद, मैं उस घर में अकेले कैसे रह सकती थी, उसके चाचा ने शादी की, अब वह मेरा बोझ कहाँ उठाएंगे, लेकिन मैं अपने घर वापस आने के बाद भी, घर में कड़वाहट भरे माहौल के कारण मुझे नौकरी करने के बाद भी रहना मुश्किल हो गया। मगर घर से बाहर निकलकर ही कोई जीवन की सच्चाई का सामना कर सकता है, मुझे अब इस बात का अहसास हो गया है, जैसे रोज घर में ऐसा माहौल चल रहा है, इस में अब रहना मुश्किल हो गया । तो आज मैंने घर छोड़ने का मन बना लिया है, काम के बाद घर आने की बजाय, मैंने कामकाजी महिलाओं के लिए बने क्वार्टरों की ओर अपने कदम बढ़ा दिएl
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब, आपकी लघुकथा अभी समय चाहती है, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई ।
सोच का सफ़र
कल रात जब मैं ड्यूटी से घर आई, तो घर में पहले जैसी महाभारत चल रही थी l मुझे तो लगता है कि मैं तो यहाँ भी बिगानी बनी हूँ , ये मुझे समझ नहीं आ रही कि जब उन्होंने मेरी शादी अपनी मर्जी से कर दी, कब मेरे साथ वो चला बीमारी के साथ भी उसने शादी की जो जल्दी उसे ले गई l
मेरी कब राए ली थी, शादी करते वक्त, लेते भी क्यूँ, मैं पहले ही तीस पार कर चुकी थी l वह तो अपने बोझ को कम करना चाहते थेl
मैं भी उस घर में अकेले कैसे रहती, चाचे ने शादी की, अब वह मेरा बोझ कहाँ उठाता l यहाँ आ कर भी मैंने तल्ख़ माहौल कारण नौकरी कर लीl मगर घर से बाहर निकल कर ही जिंदगी की सचाई के रूबरू हुआ जा सकता है , मुझे ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ, आज मैंने घर छोड़ने का मन बना लिया है । और सुबह मैं नौकरी से घर की तरफ़ आने की जगह मेरे पाँव नौकरीसुदा औरतों के लिए बने क्वाटर की तरफ़ बढ़ गए l
'सोच का सफर' शीर्षक के आलोक मे अच्छी लघु कथा कही जाएगी। परन्तु लघु कथा, क्षमा करें, सत्य के बोध जिस क्षण में घटित होता है उसको समर्पित होती है, न कि अनावश्यक वृतान्त को, आदरणीय मोहन बेनोवाल साहब । सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online