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रखिहै सबका तुष्ट

जब तब अजिया कहत रहिं

दूध पूत हैं एक

जैस पियावहु दूध तस

बढ़िहै ज्ञान विवेक

गइयन केरी सेवा कयि

करिहौ जौ संतुष्ट

पइहैं पोषण पूर जब

हुइहैं तब वह पुष्ट

अमृत  जैसन दूध बनि

निकसी बहुत पवित्र

रोग दोष का नास करि

रखिहै सबका तुष्ट

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Usha Awasthi on November 30, 2020 at 10:19pm

आ0 समर कबीर  साहेब, आदाब

रचना अच्छी लगी, जान कर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका

Comment by Samar kabeer on November 30, 2020 at 5:39pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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