परम ज्योति , शाश्वत , अनन्त
कण - कण में सर्वत्र
विन्दु रूप में क्यों भला
बैठेगा अन्यन्त्र ?
सबमें वह , उसमें सभी
चहुँदिशि उसकी गूँज
क्या यह संभव है कभी
सिन्धु समाए बूँद ?
ज्ञान नेत्र से देखते
संत , विवेकी व्यक्ति
आत्मा ही परमात्मा
घटे न उसकी शक्ति
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मैंने बहुत प्रयास किया किन्तु फोन ठीक ना होने के कारण आप सबकी प्रतिक्रिया के उत्तर नहीं दे पाई ।
सभी आ 0 को मेरा सादर आदाब,अभिवादन एवं प्रणाम
,हार्दिक आभार ,आप सभी का
वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर रचना।
आ. ऊषा जी , अभिवादन।अच्छी रचना हुई है, हार्दिक बधाई।
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
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