2122 1122 1122 22
फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई
त्यों ही फिर दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई
शेर में ज़िक्र है कोचिंग व घने कुहरे का
चाहता हूँ किसी रिक्शे पे चले मन कोई
मैंने कुछ शेर केमिस्ट्री के कहे हैं, जिससे
मेरे महबूब के दिल में हो रिएक्शन कोई
किस तरह मैंने सजाया है मेरे दिलबर को
आके देखे मेरी ग़ज़लों का ये गुलशन कोई
शायरी गीत सभी कुछ जो लिखा है मैंने
जान तेरा है असर मेरा नहीं फ़न कोई
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण सर, सादर अभिवादन सहित आभार
आ. भाई पंकज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
क्षमा निवेदन के साथ.......बहुत दिनों बाद ओबीओ पर हूँ, नए लोगों को ध्यान में रखलन के कारण गलती हुई।
क्षमा करें
//आदरणीय समर कबीर बाउजी//
आप मेरा नाम नहीं लेना चाहते थे,तभी तो 'बाउजी' कहना शुरू'अ किया था, आज नाम के साथ बाउजी देख कर आश्चर्य चकित हूँ ।
'फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई'
'ज़ह्न" शब्द की मात्रा 21होती है, रख सकते हैं ।
आदरणीय समर कबीर बाउजी...प्रणाम
मत्ले के उला मिसरे में मैं ज़हन शब्द याद शब्द की जगह रखना चाहता हूँ, लेकिन मात्रा को लेकर सन्देह में हूँ सो याद शब्द 2 बार इस्तेमाल हुआ है।
आखिरी शेर के लिए आपका सुझाव बहुत उचित है।
सादर
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई
त्यों ही फिर दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई'
मतले के दोनों मिसरों में 'याद' शब्द खटकता है, इसे दुरुस्त करने का प्रयास करें ।
'शायरी गीत सभी कुछ जो लिखा है मैंने'
इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-
'शाइरी गीत ग़ज़ल जो भी लिखा है मैंने'
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