For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

221   2121  1221  212

ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,
लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं।

अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम,
बरसों तुम्हारे प्यार में पागल रहा हूँ मैं।

हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,
बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं।

मुझको उदासियां मिली है आसमान से,
चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं।

साहिल पर जाके तू मुझे मुड़ कर तो देखता,
इक वक्त तेरी रूह की हलचल रहा हूँ मैं।

मेरी खुशी है किसमें मुझे खुद नहीं पता,
दुनिया की नाप तौल में बेकल रहा हूँ मैं।

अब खुद को ढूंढ लेने की मुश्किल में हूं जनाब,
ताउम्र तेरी यादों से बोझल रहा हूँ मैं।

ग़र याद कभी आऊं तो ये जान लेना तुम ,
मैं दौर इक बुरा था जो अब टल रहा हूँ मैं ।

अहसास अपनी सोच में उलझी है जिंदगी,
खुद अपने हर मकाम की दलदल रहा हूँ मैं।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र शर्मा on March 25, 2021 at 5:03pm

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भाई. आनंद आ गया पढ़कर. 

Comment by मनोज अहसास on January 30, 2021 at 9:39pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब पूरी ग़ज़ल को दोबारा देखता हूं और आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करता हूं सादर आभार

Comment by Samar kabeer on January 30, 2021 at 9:08pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,
लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम'

ये मिसरा 'पर' शब्द के कारण बह्र से ख़ारिज हो रहा है, 'पर', की जगह "पे" कर लें ।

'हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,
बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ग़ौर करें ।

'मुझको उदासियां मिली है आसमान से,
चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ, ग़ौर करें ।

'साहिल पर जाके तू मुझे मुड़ कर तो देखता'

ये मिसरा भी 'पर' शब्द के कारण बह्र से ख़ारिज है,'पर' की जगह "पे" कर लें ।

'अब खुद को ढूंढ लेने की मुश्किल में हूं जनाब
ताउम्र तेरी यादों से बोझल रहा हूँ मैं'

इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला यूँ कह सकते हैं:-

'अब ख़ुद को ढूँढ लेने की है जुस्तजू मुझे'

और सानी में 'ता उम्र' की जगह "इक उम्र" कर लें ।

'ग़र याद कभी आऊं तो ये जान लेना तुम 
मैं दौर इक बुरा था जो अब टल रहा हूँ मैं'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला मिसरा बह्र से ख़ारिज है,देखें ।

'अहसास अपनी सोच में उलझी है जिंदगी
खुद अपने हर मकाम की दलदल रहा हूँ मैं'

दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, ग़ौर करें ।

Comment by मनोज अहसास on January 29, 2021 at 9:29pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जान गोरखपुरी साहब

बहुत दिनों बाद आप मेरी ग़ज़ल पर आए 

हार्दिक आभार

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on January 29, 2021 at 5:11pm

221 2121 1221 212

ये मानता हूँ पहले से बेकल रहा हूँ मैं,
लेकिन तेरे ख़्यालों का संदल रहा हूँ मैं।..... मिसरों में रब्त नहीं दिख रहा।

अब होश की ज़मीन पर टिकते नहीं क़दम,
बरसों तुम्हारे प्यार में पागल रहा हूँ मैं।.....अच्छा शेर

हैरत से देखते हैं मुझे रास्ते के लोग,
बिल्कुल किनारे राह के यूँ चल रहा हूँ मैं।.....बात नहीं बनी।

मुझको उदासियां मिली है आसमान से,
चुपचाप इन के आसरे में जल रहा हूँ मैं।.... यहां भी बात नहीं बनी।

साहिल पर जाके तू मुझे मुड़ कर तो देखता,
इक वक्त तेरी रूह की हलचल रहा हूँ मैं।.......बहुत खूब,बढ़िया।

मेरी खुशी है किसमें मुझे खुद नहीं पता,
दुनिया की नाप तौल में बेकल रहा हूँ मैं।.....ये अच्छा शेर हुआ है

अब खुद को ढूंढ लेने की मुश्किल में हूं जनाब,
ताउम्र तेरी यादों से बोझल रहा हूँ मैं।.........../जनाब/ और /तेरी/ दोनों में सम्बंध नहीं जुड़ रहा।

ग़र याद कभी आऊं तो ये जान लेना तुम ,
मैं दौर इक बुरा था जो अब टल रहा हूँ मैं ।....दौर के साथ बदलना चलेगा, जबकि वख्त के साथ टलना' मेरे ख्याल से।

अहसास अपनी सोच में उलझी है जिंदगी,
खुद अपने हर मकाम की दलदल रहा हूँ मैं। ...अपनी/ की जगह किसकी कर लें तो बेहतर रहेगा,मेरे ख्याल से।

सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service