221 2121 1221 212
अपनी खता लिखूं या ख़ुदा का किया लिखूं .
इस दौरे नामुराद को किसका लिखा लिखूं .
उठती नहीं है तेरी तरफ मेरी उंगलियां,
फिर कौन सी कलम से तुझे बेवफा लिखूं.
मैं तेरा नाम ला नहीं सकता बयान में,
अपने ख़्याल पर बता किस का पता लिखूं.
मेरी पुकार तो नहीं जाएगी आप तक,
मैं किसके जरिए साल मुबारक नया लिखूं.
है याद मुझको तेरा वो छूना मेरे क़दम,
तब कैसे खुद को तेरी नज़र से गिरा लिखूं.
अब जिंदगी के शोर ने सब कुछ भुला दिया,
कैसे कोई ख़्याल ग़ज़ल में नया लिखूं.
मुद्दत के बाद लिख रहा हूं आज दोस्तों,
पर सोचता हूं लिखने का हासिल में क्या लिखूं.
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमर उद्दीन अमीर साहब बहुत-बहुत शुक्रिया आपके सुझाव पर गौर कर लूंगा
आदरणीय समर कबीर साहब बहुत-बहुत आभार शुक्रिया आपके निर्देशानुसार टंकण त्रुटियों को सुधारने का प्रयास करूंगा
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब गजल में शिरकत और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक शुक्रिया
जनाब मनोज 'अह्सास' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ,
मिसरा- उठती नहीं है तेरी तरफ मेरी उंगलियां, ग़ौर कीजियेगा कि किसी को बुरा कहने के लिए उंगलियां नहीं बल्कि एक ही उंगली उठाई जाती है, आप चाहें तो मिसरा यूँ कर सकते हैं : 'उठती नहीं ये उंगली भी तेरी तरफ मेरी' तीसरे शे'र में ख्याल को ख़याल कर लें, नुक़्तों पर भी ध्यान दीजियेगा। सादर।
जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
कुछ टंकण त्रुटियाँ देख लें ।
आ. भाई मनोज कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई ।
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