For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 22

निहाँ दिलों में यहां कितने राज़ गहरे हैं,
कि चश्म-ए-तर पे तबस्सुम के देखो पहरे हैं।

मिलो किसी से अगर फासला ज़रा रखना,

यहां मुखौटे लगाए हज़ार चहरे हैं।

ये इंतिजार हमें है सुने वो ख़ामोशी,
मगर ये इल्म नहीं था वो दिल से बहरे हैंl

ग़ज़ब का हौसला है देख मेरी आंखों का,
कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।

तुम्हारी याद जो महफ़िल में दफ़अतन आई,

इसी सबब से मेरे बहते अश्क ठहरे हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Saarthi Baidyanath on March 22, 2021 at 3:22pm
Very Nice
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 9:42pm

आ. भाई समर जी, सादर आभार..

Comment by Samar kabeer on March 16, 2021 at 7:54pm

//बह्र के हिसाब से '" कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"

मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे//

कि इनमें आ--1212

ज भी सपने--1122

कई सुनह--1212

रे हैं--22

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 7:41pm

आ. प्रतिभा जी, अभिवादन । अच्छी गजल हुइ है । हार्दिक बधाई । 

बह्र के हिसाब से '" कि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे है।"

मिसरे के रदीफ के बार शंशय सा है । मेरे संशय को दूर करने का कष्ट करे । सादर..

Comment by Samar kabeer on March 15, 2021 at 9:07pm

मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'यहाँ मुखौटे लगाये हज़ार चहरे हैं'

'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी
हमें ये इल्म नहीं वो तो दिल से बहरे हैं'

इस शैर को यूँ कहें:-

'ये इंतिज़ार हमें है सुनें वो ख़ामोशी
मगर ये इल्म नहीं था वो दिल से बहरे हैं'

'ग़ज़ब का हौसला रखती हमारी भी आंखें,
हैं टूटते तो भी सपने सभी सुनहरे हैं'

इस शैर को यूँ कहें:-

'ग़ज़ब का हौसला है देख मेरी आँखों का

क़ि इनमें आज भी सपने कई सुनहरे हैं'

'तुम्हारी याद यूं महफ़िल में दफ़अतन आई
किसी तरह से ही बहते ये अश्क ठहरे हैं'

इस शैर को यूँ कहें:-

'तुम्हारी याद जो महफ़िल में दफ़अतन आई
इसी 

सबब से मेरे बहते अश्क ठहरे हैं'

Comment by Pratibha Sharma on March 13, 2021 at 9:40pm
जी आदरणीय वही अरकान है।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 3:56pm

मुहतरमा प्रतिभा शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । आपने बह्र के अरकान नहीं लिखे हैं, कृपया लिख दिया करें इससे टिप्पणी करने वालों और सीखने वालों को आसानी होती है। ग़ालिबन आपकी ग़ज़ल के अरकान ये हैं। 

1212 / 1122 / 1212 / 22

'मुखौटे भी कई दफ़्हा लगे कि चेहरे हैं'   इस मिसरे में 'दफ़्हा' शब्द ग़लत है, सहीह लफ़्ज़ 'दफ़अ' है, मिसरा यूँ कर सकते हैं-

'कई दफ़अ तो मुखौटे भी लगते चहरे हैं'

'ये इंतज़ार हमें है सुने वो ख़ामोशी,

हमें ये इल्म नहीं वो तो दिल से बहरे हैं'   शे'र के ऊला में 'सुने' को 'सुनें' कर लें, दोनों मिसरों में 'हमें' ठीक नहीं है सानी से 'हमें' जगह 'मगर' करना बहतर होगा।

'ग़ज़ब का हौसला रखती हमारी भी आंखें,   इस शे'र का शिल्प और वाक्य विन्यास दुरुस्त नहीं है, यूँ कर सकते हैं - 

हैं टूटते तो भी सपने सभी सुनहरे हैं' 

'ग़ज़ब का हौसला रखकर हमारी आँखों को 

लगा कि ख़्वाब सभी अपने अब सुनहरे हैं' 

व्याकरण की शुद्धता के लिए 'आखें', 'यूं' , 'यहां' पर चन्द्र बिन्दु लगा लें। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
50 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
14 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service