2212 2212 2222 2
मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है
तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है
आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है
माँ तेरे हर अंदाज़ से खुशबू आती है
आसाँ है तेरी हर, इक आहट को सुन लेना
दिल को तिरे आग़ाज़ से खुशबू आती है
तू रहती है घर में तो घर, घर सा लगता है
हो साथ अगर हम-साज़ से खुशबू आती है
कोई तो जादू आता है तुझको ओ माँ जो
टोके तो दख़ल अंदाज़ से खुशबू आती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Comment
शुक्रिया आदरणीय जनाब अमीर जी
हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिये आभार
टोके 22 तो 1 दख 2 लं 2 दा 2 ज 1 से 2 खुश 2 बू 2 आती 22 है 2
जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, प्यारे भावों के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
2212 - 2212 - 2222 - 2
"आसाँ है तुझको दूर से ही सुन लेना माँ" इस मिसरे का शिल्प और
इन मिसरों का वाक्य विन्यास दुरुस्त नहीं है-
"दिल को तिरे आग़ाज़ से खुशबू आती है"
"हो साथ जो तू हम-साज़ से खुशबू आती है" ये मिसरा बह्र में नहीं है।
"टोके तो दख़्ल-अंदाज़ से खुशबू आती है" ये मिसरा बह्र में नहीं है, सही लफ़्ज़ दख़ल-अंदाज़ है, सादर।
सहृदय शुक्रिया आदरणीय ब्रज जी हौसला अफ़ज़ाई के लिये
सादर
इसके मापनी हैं
2212 2212 2222 2
बड़े ही प्यारे भाव हैं भाई तमाम जी...इसकी मापनी क्या है?
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