22 22 22 22 22 22 22 22
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज़ क़लम थम जायेगी
ना दिल से सियाही निकलेगी ना सांस मुझे लिख पायेगी
जिस रोज़ नये लब गाएंगे जिस रोज़ मैं चुप हो जाऊंगा
इक चाँद फ़लक से उतरेगा इक रूह फ़लक तक जायेगी
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे होंगे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों में
फिर कोई कहानी रूहों में हौले हौले घुल जायेगी
इक रोज़ लहू ज़म जायेगा इक रोज क़लम थम जायेगी
इन आती जाती रूहों का कोई तो जादूगर होगा
ये भी तो टकराती होंगीं आपस में मिलन होता होगा
कोई बैठा तो होगा "आज़ी" इक ओट लिये दीवारों से
कोई भटकाता है सफ़र यहाँ पूछो तो ज़रा पतवारों से
अनसुलझी पहेली है कोई इक रोज़ सुलझ ही जायेगी
इक रोज़ लहू जम जायेगा इक रोज क़लम थम जायेगी
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Comment
सादर प्रणाम आदरणीय धामी सर
सहृदय शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई और इस खुशनवाज़ी के लिये आभार
सादर
आ. भाई आज़ी तमाम जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
सादर प्रणाम आदरणीय बसंत जी
सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया देने व हौसला अफ़ज़ाई के लिए
सादर
आदरणीय अमीर जी सादर नमस्कार
बहुत बढ़िया गजल
आदरणीय अमीर जी एक मिसरा
कोई22 भटकाता222 है1 सफ़र12 याँ2 पूछो22 तो1 ज़रा12 पतवारों222 से2
यहाँ को याँ करने से बहर में आ जायेगा
5 मिसरे अभी बहर से बाहर हैं
सादर प्रणाम आदरणीय अमीर जी
सहृदय शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई व मार्गदर्शन के लिये
जी जनाब ये मिसरे बहर से ख़ारिज हैं या नहीं यही जानने के लिये नग़मा ओ बी ओ पर शेयर किया था जो कि आपकी इस्लाह से सार्थक हुआ शुक्रिया
टंकण त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षण के लिये आभार
सादर
जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ख़ूबसूरत अहसासात से लबरेज़ अच्छा नग़्मा पेश करने की कोशिश है, मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आपने (बह्र-ए-मीर) ग़ज़ल के अरकान लिखे हैं, मगर आपके नग़्मा के ये मिसरे बह्र से ख़ारिज हैं-
22 22- 22 22- 22 22 - 22 22
फिर नये नये अफ़सानों में कुछ नये नये चहरे होंगे
फिर नये नये किरदारों के किरदार नये गहरे हों गे
फिर कोई पिरोयेगा रिश्तों को नये नये अल्फाज़ों में
फिर कोई पुरानी रश्मों को ढालेगा नये रिवाज़ों में
कोई बैठा तो होगा "आज़ी" इक ओट लिये दीवारों से
कोई भटकाता है सफ़र यहाँ पूछो तो ज़रा पतवारों से
इस मिसरे में टंकण त्रुटि के कारण दोष है, पहेली करने से मिसरा बह्र में आ जायेगा।
'अनसुलझी पहली है कोई इक रोज़ सुलझ ही जायेगी' सादर।
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