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ज़िन्दगी की किताब से (रजनी छाबरा)

ज़िन्दगी की किताब से
-------------------
ज़िन्दगी की किताब से
फट जाता है जब
कोई अहम पना
अधूरी रह जाती है
जीने की तमन्ना
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी
रह जाता है मुरझाया पौधा
सीने में छुपाये
दर्द की कहानी
जिस पौध को पानी की बजाए
सींचना पड़ता हो
अश्कों ओर नए खून से
उस दर्द के पौधे का
अंजाम क्या होगा
अंजाम की फ़िक्र में
प्रयास तो नहीं छोड़ा जाता
मौत के बड़ते कदमों की
आहट से डर
जीने की राह से मुहँ
मोड़ा नहीं जाता
जब तक सांस
तब तक आस
गिने चुने पलों को
जी भेर जीने का मोह
पल पल में
सदियाँ जी लेने की चाह
ज़िन्दगी में भर देता
इतनी महक सब ओर
विश्वास ही नहीं होता
कैसे टूट जाएगी यह डोर
दर्द के पौधे पर
अपनेपन के फूल खिलते हैं
यह फूल रहें या न रहें
इनकी यादों की खुशबू से
चमन महकते हैं
------------------
कैंसर रोगी को समर्पित कविता
रजनी छाबरा
(Smt Rajni Chhabra jee key anumati sey)

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Comment

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Comment by mohinichordia on October 10, 2011 at 3:42pm

बहुत ही सुन्दर रजनी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:38pm
बहुत ही सुन्दर और मार्मिक कविता|
ब्रह्माण्ड
Comment by Dr Nutan on September 4, 2010 at 3:58pm
bahut sundar kavita hai Rajni ji...... maut kitne bhi kareeb ho saanse chalti hai.jab tak jindagi hai..jine ka haunshla bharti hai.. cancer se pidit bachho ke liye.. prabhu unke jindagi k panno me khoob sare sundar panne jod den... shubhkamnaa
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 7, 2010 at 11:15pm
waah ganesh jee badhiay kaini ee kavita ehja post karke.....
aur rajni jee ke bhi dhanybaad deb chahab ki etna badhiya kavita uha ke likhni.........
अपनेपन के फूल खिलते हैं
यह फूल रहें या न रहें
इनकी यादों की खुशबू से
चमन महकते हैं
bahut badhiya baa.............gabnesh bhaiya aur bhi kuch rajni jee ke kavita hokhe ta ehja post kar deb
Comment by Rash Bihari Ravi on March 15, 2010 at 4:44pm
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी man ko chuti hui ye line

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2010 at 8:48am
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी
रह जाता है मुरझाया पौधा
Bahut hi khubsurat aur dil ko chhu leney wali yey rachna hai, Rajni bahan aisey hi likhtey rahiyey, anmol rachna hai yey aapki.

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