For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी की किताब से (रजनी छाबरा)

ज़िन्दगी की किताब से
-------------------
ज़िन्दगी की किताब से
फट जाता है जब
कोई अहम पना
अधूरी रह जाती है
जीने की तमन्ना
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी
रह जाता है मुरझाया पौधा
सीने में छुपाये
दर्द की कहानी
जिस पौध को पानी की बजाए
सींचना पड़ता हो
अश्कों ओर नए खून से
उस दर्द के पौधे का
अंजाम क्या होगा
अंजाम की फ़िक्र में
प्रयास तो नहीं छोड़ा जाता
मौत के बड़ते कदमों की
आहट से डर
जीने की राह से मुहँ
मोड़ा नहीं जाता
जब तक सांस
तब तक आस
गिने चुने पलों को
जी भेर जीने का मोह
पल पल में
सदियाँ जी लेने की चाह
ज़िन्दगी में भर देता
इतनी महक सब ओर
विश्वास ही नहीं होता
कैसे टूट जाएगी यह डोर
दर्द के पौधे पर
अपनेपन के फूल खिलते हैं
यह फूल रहें या न रहें
इनकी यादों की खुशबू से
चमन महकते हैं
------------------
कैंसर रोगी को समर्पित कविता
रजनी छाबरा
(Smt Rajni Chhabra jee key anumati sey)

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mohinichordia on October 10, 2011 at 3:42pm

बहुत ही सुन्दर रजनी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 5:38pm
बहुत ही सुन्दर और मार्मिक कविता|
ब्रह्माण्ड
Comment by Dr Nutan on September 4, 2010 at 3:58pm
bahut sundar kavita hai Rajni ji...... maut kitne bhi kareeb ho saanse chalti hai.jab tak jindagi hai..jine ka haunshla bharti hai.. cancer se pidit bachho ke liye.. prabhu unke jindagi k panno me khoob sare sundar panne jod den... shubhkamnaa
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 7, 2010 at 11:15pm
waah ganesh jee badhiay kaini ee kavita ehja post karke.....
aur rajni jee ke bhi dhanybaad deb chahab ki etna badhiya kavita uha ke likhni.........
अपनेपन के फूल खिलते हैं
यह फूल रहें या न रहें
इनकी यादों की खुशबू से
चमन महकते हैं
bahut badhiya baa.............gabnesh bhaiya aur bhi kuch rajni jee ke kavita hokhe ta ehja post kar deb
Comment by Rash Bihari Ravi on March 15, 2010 at 4:44pm
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी man ko chuti hui ye line

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 12, 2010 at 8:48am
कभी कभी बागबान से
हो जाती है नादानी
तोड़ देता है ऐसे फूल को
जिसके टूटने से
सिर्फ शाख ही नहीं
छा जाती है
सारे चमन में वीरानी
रह जाता है मुरझाया पौधा
Bahut hi khubsurat aur dil ko chhu leney wali yey rachna hai, Rajni bahan aisey hi likhtey rahiyey, anmol rachna hai yey aapki.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service