2222 - 2222
हो के पशेमाँ याद करोगे
रो कर भी फ़रियाद करोगे
याद करोगे जब भी हमको
अश्क़ अपने बरबाद करोगे
ज़ख़्म लगेंगे जब फूलों से
तुम हमको तब याद करोगे
घर तो बसा लोगे यारो पर
दिल कैसे आबाद करोगे
उतनी दुआएं दूँगा तुमको
जितना मुझे बरबाद करोगे
बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा
जो चाहे इरशाद करोगे
मेरी ख़ातिर छोड़ो भी यारो
क्या सब को नाशाद करोगे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब आज़ी 'तमाम' साहिब आदाब, जी हाँ ख़ुदा का शुक्र है सब ठीक है आज़ी साहिब। ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।
सादर प्रणाम आ अमीर जी
काफी समय से अनुपस्थित रहे मंच पर सब ठीक तो है
काफी अच्छी ग़ज़ल हुई है सहृदय बधाई
सादर
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
अपरिहार्य कारणों से काफी समय तक निष्क्रिय रहने के बाद ओ बी ओ पर हाज़िर हुआ हूँ सभी के लिए शुभाकांक्षी हूँ सभी सम्मानित सुधी जनों को आदाब। सादर।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
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