221, 2122, 221, 2122
1)इन आँसुओं की इक दिन तासीर बोल उठेगी
ग़म देख मेरा तेरी तस्वीर बोल उठेगी
2)जो हाल -ए -दिल हम अपना लिख दें कभी क़लम से
रोने लगेगा काग़ज़ तहरीर बोल उठेगी
3)ईमान पुख़्ता रख और हिम्मत से काम ले तू
फिर देख कैसे तेरी तक़दीर बोल उठेगी
4)पूछोगे प्यार से तुम जब हाल- ए- दिल हमारा
हर ज़ख़्म जी उठेगा हर पीर बोल उठेगी
5) इतना ग़लत भी मत कर ये इल्तिजा है तुझसे
वर्ना तू देख मेरी शमशीर बोल उठेगी
6)महशर में साथ तेरा कोई न देगा प्यारे
तेरे ख़िलाफ़ तेरी जागीर बोल उठेगी
7)मजनूँ के जैसा हूँ मैं बोलेंगे सारे पत्थर
फ़रहाद सा है ये जू ए शीर बोल उठेगी
मौलिक अप्रकाशित
(अनीस अरमान )
Comment
जनाब अमीरुद्दीन अमीर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए और इतने ध्यान से पढ़ने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब अनीस 'अरमान' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। शे'र के बोल्ड शब्दों को देखें-
7)मजनूँ के जैसा हूँ मैं बोलेंगे सारे पत्थर
फ़रहाद सा है ये जू //ए शीर बोल उठेगी इस शे'र में शुतरगुर्बा दोष का ज़हूर मालूम होता है। इसके इलावा आख़िरी मिसरे में रवानी नहीं है शिकस्त-ए-नारवा दोष के कारण। देेखियेगा, सादर।
जनाब अनीस अरमान जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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