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मन पर कुछ दोहे ......

मन पर कुछ दोहे : ......

मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ।
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।

मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।
मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।।

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । ।

मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।
मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर । ।

मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।
मन में अम्बर प्रीत का, मन में बसती हीर ।।

सुशील सरना / 3-8-21
 मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 21, 2021 at 9:12pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझावों का तहे दिल से शुक्रिया । आपका मार्गदर्शन मेरे लिए अनमोल है ।सादर आभार एवं नमन सर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2021 at 10:58pm

आदरणीय सुशील सरना जी, 

आप तो दोहा छंद के सहज अभ्यासी हो गये हैं, भाई ..

बहुत खूब ! .. आप प्रयोग भी अच्छे कर ले रहे हैं, यह देखना वस्तुतः सुखद है. 

देखिए, फिर भी कुछ दोहों पर काम कर रहा हूँ, बताइएगा, कैसा बन पड़ा है.

वैसे, सुझावों को मानने की बाध्यता नहीं है. 

 

मन को मन का मिल गया, मन में ही विश्वास ...  ............ मन में है विश्वास ..  
मन में भोग-विलास है, मन में है सन्यास ।।  .............     मन ही मेंं संन्यास ..     [संन्यास शुद्ध अक्षरी है, न कि सन्यास

 

मन में मन का सारथी, मन में मन का दास ।
मन में साँसें भोग की, मन में है बनवास ।। ........... वाह ! 

मन माने तो भोर है, मन माने तो शाम ।  .....     ... भोर के समानान्तर साँझ उचित है, न कि शाम .. 
मन के सारे खेल हैं, मन के सब संग्राम । । 

मन मंथन करता रहा, मिला न मन का छोर ।
मन को मन ही छल गया, मन को मिली न भोर .........मन ही मन का चोर 

मन सागर है प्यास का, मन राँझे का तीर ।
मन में अम्बर प्रीत का, मन में बसती हीर ।। ................. हम्म .. 

शुभातिशुभ

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2021 at 3:29pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2021 at 2:26pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । मन को लेकर बहुत खूबसूरत दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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