राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रहरी और मणिकर्णिका की वीरता को घर-घर पहुंचाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान की सुप्रसिद्ध कविता झांसी की रानी की पंक्तियाँ
'बुन्देले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...
'सुप्त जनता के दिलों में आजादी का अलाव जगाने आयी सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियाँ सुभद्रा जी द्वारा रचित कई कविताओं से ज्यादा ख्याति प्राप्त हैं।
नौ साल की उम्र में पहली कविता ’नीम’ लिखने वाली सुभद्रा जी का जन्म इलाहाबाद के निहालपुर में जमींदार परिवार में 16 अगस्त, 1904 में हुआ था। चार बहनों और दो भाईयों वाली सुभद्रा जी का विवाह खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण के साथ हुआ था और अपने जीवन संगिनी के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी,कई बार जेल भी गयीं। सरल, सहज, सपष्ट भाषा और वातावरण अनुसार चित्रण प्रधान शैली में लिखी नारी विमर्श केन्द्रित कहानियां ’बिखरे मोती’ संग्रह में पन्द्रह कहानियां, उन्मादिनी संग्रह में नौ कहानियां,सीधे-साधे चित्र में चौदह कहानियां तथा कविता संग्रह मुकुल, त्रिधारा,अन्य कविताएँ, बाल साहित्य झांसी की रानी,कदंब का पेड़, सभा का खेल हैं। सरल काव्यात्मक ह्रदयग्राही,उन्माद,जुनून,जज्बात और वीर रस की प्रधानता हैं।
कुछ रचनाओं की अद्भुत पंक्तियाँ...
झाँसी की रानी कविता में देशभक्ति, राष्ट्रीय चेतना की भावना...सोये हुये को जगाना वीर रस की सरसता..
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी।
कविता 'वीरों का कैसा हो नमन ?’ में एक वीर सैनिक सारी सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश की सेवा के लिए तत्पर हैं...
आ रही हिमाचल से पुकार
दे उदधि गरजता भू नभ अपार।
कदंब का पेड़ कविता में बाल सुलभ मन की इच्छाओं को चित्रण करती...
यह कदंब का पेड़ अगर होता मां यमुना तीरे
मैं भी उन पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।
मुकुल कविता में अपनी दुखःद स्थिति की ओर इशारा हैं...
मुझे छोड़कर तुम्हें प्राणधन
सुख या शान्ति नहीं होगी
यही बात तुम भी कहते
सोचो,भ्रान्ति नहीं होगी।
नारी विमर्श केन्द्रित कहानियां जिनकी कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्याएं, राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान,देशभक्ति समाहित हैं।
’बिखरे मोती’ किताब में आत्मकथ्य में लिखा...हृदय के टूटने से ऑसू निकलते हैं, जैसे सीप फूटने से मोती....मोती का मूल्य रत्न पारखी ही जानता हैं...मैं भूखे को भोजन और प्यासे को पानी पिलाना अपना परम धर्म समझती हूँ। ईश्वर के बनाएं नियमों को मानती हूँ।’
अल्पायु से ही कविता लिखने का सिलसिला आजीवन जारी रहा, साथ ही पारिश्रमिक तौर पर कहानियां लिखने वाली सुभद्रा जी की जीवन-मृत्यु के साथ अद्भुत संयोग था। नागपंचमी को जन्मी और वसंत पंचमी को स्वर्गारोहण करने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान जी धरा पर साहित्य परिवार की अनमोल धरोहर के रूप में सदैव स्मृतियों में रहेगी।
स्वरचित व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
Comment
सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी को लेकर सार्थक आलेख हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया बबिता जी
दुरुस्त कर लें ।
जी।भूलवश गलती लिख गया
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
'बुन्देलें हरबोले के मुंह हमने सुनी यह कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी की रानी थी'
कविता की ये पंक्तियाँ आपने ग़लत लिखी हैं,इन्हें दुरुस्त कर लें:-
'बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी'
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