For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-गीत आशिक़ाना हो

2122 1212 22/112

 1

उसका जब मेरी कू में आना हो

उठ चुका ग़म का शामियाना हो

2

मिल रहा प्यार जब पुराना हो

लब प तब गीत आशिक़ाना हो

3

हिज्र की रात में वो आए जब

होटों पर वस्ल का तराना हो

4

ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में

पेट भरने को आब ओ दाना हो

5

टूटी कश्ती में बैठ कर कैसे

उस किनारे प अपना जाना हो

6

कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे

उसका दिल मेरा आशियाना हो

7

तर्क पर तर्क यूँ दिए उसने

जैसे मक़सद जिरह बढ़ाना हो

8

दिल की दीवारें ऐसी हैं " निर्मल"

जैसे जाँ लेवा क़ैद खाना हो

मौलिक व अप्रकाशित

 रचना निर्मल

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 1:17pm

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर जायेगी। सादर..

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2021 at 12:32pm

आदरणीया रचना जी  अच्छी गजल कही आपने आदरणीय समर साहब की बातों से और स्पषट हो गई है  ग़ज़ल 

Comment by Rachna Bhatia on August 21, 2021 at 7:20pm

आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। सर्, जी, फेयर में सुधार कर लेती हूँ। बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2021 at 3:48pm

'तर्क पर तर्क यूँ दिए उसने

"जैसे नीचा मुझे दिखाना हो"

ठीक है ।

Comment by Rachna Bhatia on August 19, 2021 at 7:52pm

आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।सर् बहुत अच्छी इस्लाह दी आपने। आभार ।सर् बहुत कोशिश के बाद भी मैं ' गली ' शब्द नहीं ला पाई थी। आपने बहुत आसानी से उसे ले आए। इसके लिए व नुक़्तों के लिए विशेष आभार।

इस शे'र का सानी क्या इस तरह ठीक रहेगा

तर्क पर तर्क यूँ दिए उसने

"जैसे नीचा मुझे दिखाना हो"

सादर।

Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 6:31pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'उसका जब मेरी कू में आना हो'

इस मिसरे को यूँ कहें:-

'उसका जब इस गली में आना हो'

'ऐ ख़ुदा हर गरीब के घर में'

गरीब--"ग़रीब"

'कह रहा है मरीज़-ए-इश्क़ मुझे'

इस मिसरे में 'मुझे' की जगह "मुझसे" होना चाहिए,उचित लगे तो मिसरा यूँ कह सकती हैं:-

'कहता है मुझसे ये मरीज़-ए-इश्क़'

'जैसे मक़सद जिरह बढ़ाना हो'

इस मिसरे में 'जिरह' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "जर्ह" 21 देखियेगा ।

'जैसे जाँ लेवा क़ैद खाना हो'

क़ैद खाना--"क़ैद ख़ाना"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service