है मरने वालों की लंबी बड़ी दास्तां
कुछ मरे हैं यहाँ कुछ मरे हैं वहाँ
एक इंसा की गर्दन है अब तक बची
उसके बदले में ये सब तबाही मची
कितनी बार ऐसे हो चुके हैं हादसे
मुजरिम है सलामत बेगुनाह जा फँसे
आतंकी अपनी हठ पर हैं कबसे अड़े
बहाया है खून लोगों के कर लोथड़े
कितनों का बचपन पिता बिन लुटा
सुहागिनों का सिन्दूर माँगों से छुटा
माँ-बाप के कलेजों के चिथड़े हुये
हालात देश के और भी हैं बिगड़े हुये
हमने दिये हैं सबर के कितने इम्तहां
और ये जलाते रहे हैं लोगों के जहां
अपने होश को दिलों में करके दफन
कितने लोगों को पहना चुके हैं कफ़न
नफरत से तबाही मचाने में हैं मखमूर
हिसाब इनका भी एक दिन होगा जरूर l
-शन्नो अग्रवाल
Comment
एक इंसा की गर्दन है अब तक बची
उसके बदले में ये सब तबाही मची... kash ki is insaan ka faisla ho pata..
अपने होश को दिलों में करके दफन
कितने लोगों को पहना चुके हैं कफ़न
नफरत से तबाही मचाने में हैं मखमूर
हिसाब इनका भी एक दिन होगा जरूर l
बेहतरीन, बहुत -बहुत बधाई . शन्नो जी,उस दिन का इंतज़ार तो हर हिन्दुस्तानी को है.
//एक इंसा की गर्दन है अब तक बची
उसके बदले में ये सब तबाही मची//
बहुत ही आक्रोश के साथ लिखी गई रचना है , आप के कथन से सहमत हूँ , बहुत ही खुबसूरत भाव है, बहुत बहुत बधाई आपको इस खुबसूरत रचना हेतु और बहुत बहुत दुःख उस घटना हेतु |
//इंसान की हैवानियत की होती है हद
पर ये हैवान लांघ गये हद की सरहद//
शन्नो दीदी उक्त नीचे वाली पक्ति पर ध्यान देने की आवश्यकता है "हद की सरहद" का कोई मतलब नहीं निकलता, सरहद मतलब देश की सीमा, हद मतलब सीमा |
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