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बड़े नामी साहिर हैं ‘’शन्नो’’ इस महफिल में
तू धीरे से खिसक ले वरना हाल क्या होगा ?
हा हा हा हा बहुत खूब शन्नो दीदी, आपके ख्याल बड़े दुरुस्त है , होना क्या है ? कुछ न होगा , यह ओ बी ओ है सिखने सिखाने का मंच , हम सभी एक दुसरे से सीखते और सिखाते है , आप का प्रयास सराहनीय है , इस रचना से यह तो लगता ही है की आप ग़ज़ल से सम्बंधित टर्मीनोलाजी समझ रही है |
रदीफ़ और काफिया पहले शेर (मतला) से तय होता है उस हिसाब से फिर क्या होगा रदीफ़ है, किन्तु काफिया कुछ भी नहीं है |
आपके प्रयास की सराहना करता हूँ | कक्षा को फिर से पढने की जरूरत है दीदी |
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