बादल ने पूछा मानव से :
क्यों वृक्षों को काट दिया ?
धरती माँ का धानी आँचल
सौ टुकड़ों में बाँट दिया !
बन जायेंगे उन पेड़ों से कुछ खिड़की , कुछ दरवाज़े ...
देते रहना फिर बारिश की बूंदों को तुम आवाज़े ...
मानव ! तुमको कंक्रीट के जंगल बहोत सुहाते हैं ,
बोलो , क्या उनमें सावन के मोर नाचने आते हैं ?
बिन बरसे बादल लौटे तो धरती शाप तुम्हें देगी -
तपती , गरम हवा , सूखी नदिया संताप तुम्हें देगी !
वृक्ष धरा का आभूषण हैं , वृक्ष…
Posted on September 26, 2012 at 3:30pm — 4 Comments
हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल ......
मसअले नाज़ुक हैं , टाले जायेंगे .......
ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......…
Posted on August 21, 2011 at 4:30pm — 10 Comments
ज़ेहन मे दीवार जो सबने उठा ली है,
रातें भी नही रोशन, शहर भी काली है |
मालिक ने अता की है, एक ज़िंदगी फूलों सी,
काँटों से बनी माला क्यूँ कंठ मे डाली है |
कैसी ये तरक्की है , कैसी ये खुशहाली है,
पैसे से जेब भारी, दिल प्यार से खाली है |
दर्द फ़क़त अपना ही दर्द सा लगता है,
औरों के दर्द-ओ-गम से आँख चुरा ली है |
किस-किस को सुनाएँगे अफ़साना-ए-हयात अब,
बेहतर है खामोशी, जो लब पे सज़ा ली है |
Posted on July 18, 2011 at 7:00pm — 11 Comments
Posted on June 28, 2011 at 6:50pm
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Thank You for accepting my friend request . I can understand hindi except some difficult word and urdu mixed . Hope our friedship long lasts..
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…