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बादल ने पूछा मानव से

बादल ने पूछा मानव से :
क्यों वृक्षों को काट दिया ?

धरती माँ का धानी आँचल
सौ टुकड़ों में बाँट दिया !

बन जायेंगे उन पेड़ों से कुछ खिड़की , कुछ दरवाज़े ...
देते रहना फिर बारिश की बूंदों को तुम आवाज़े ...

मानव ! तुमको कंक्रीट के जंगल बहोत सुहाते हैं ,
बोलो , क्या उनमें सावन के मोर नाचने आते हैं ?

बिन बरसे बादल लौटे तो धरती शाप तुम्हें देगी -
तपती , गरम हवा , सूखी नदिया संताप तुम्हें देगी !

वृक्ष धरा का आभूषण हैं , वृक्ष धरा का सोना हैं ,
वृक्षों से विहीन धरती पर कल तुमको भी रोना है

.............रावी

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Comment

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Comment by seema agrawal on September 26, 2012 at 7:25pm

बादल ने पूछा मानव से :
क्यों वृक्षों को काट दिया ?

धरती माँ का धानी आँचल
सौ टुकड़ों में बाँट दिया .............एक निरंतर प्रवाहित होती नदी की तरह लगी आपकी कविता जिस प्रकार प्रवाहित जल में गन्दगी नहीं रुक पाती उसी तरह शब्दों का  और अनुशासित निरंतर प्रवाह किसी दोष को आने नहीं देता ....बहुत खूब 

भाव और शिल्प दोनों ने मुग्ध कर दिया ....बधाई प्रभा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2012 at 5:39pm

बहुत गहरी संवेदना पूर्ण अभिव्यक्ति बधाई प्रभा खन्ना जी 

जिन वृक्षों की हमें पूजा कानी चाहिए, उन्हें काट रहे है 

जिन व्रक्षों से हमें छाया मिलती, उनको हम मार रहे है |

न समाज का, न सरकार का न मानव को कोई गम है ,

वृक्षों की कटाई के विरोध में जितना लिखा जाए कम है |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2012 at 5:35pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, 

बादल नें पूछा मानव से, क्यों वृक्षों को काट दिया?.... दिल को छूने वाले शब्द 
हार्दिक बधाई इस रचना हेतु आ. प्रभा खन्ना जी 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 26, 2012 at 5:02pm

बहुत अच्छी संदेशपरक प्रस्तुति 

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