For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल...

हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल ......
मसअले नाज़ुक हैं , टाले जायेंगे .......

ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......
हम कहाँ इस से संभाले जायेंगे .......

भूख भी महंगाई से डरने लगी ,
गिन के अब मुँह में निवाले जायेंगे ........

पीर परबत है , पिघलती ही नहीं ........
हम कहाँ इसको हटा ले जायेंगे .......

मुद्दतों पलते रहे जो साँप , अब ,
आस्तीनों से निकाले जायेंगे ............ रावी

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by prabhat kumar roy on May 3, 2012 at 9:26am

अर्थपूर्ण रचना के लिए बधाई.

Comment by दुष्यंत सेवक on September 6, 2011 at 3:19pm

भूख भी महंगाई से डरने लगी ,गिन के अब मुँह में निवाले जायेंगे ........वर्तमान परिप्रेक्ष्य को सटीकता से दर्शाती पंक्तियाँ ....बेहद मर्मस्पर्शी रचना. आभार प्रभा जी

Comment by mohinichordia on September 6, 2011 at 12:09pm

 भूख भी महंगाई से डरने लगी ,

गिन के अब मुहं में निवाले जायेंगे ..बहुत ही सुन्दर अशआर लिखे हें आपने प्रभाजी ..  दुष्यंत कुमार याद आ गए |

Comment by वीनस केसरी on September 4, 2011 at 12:19am

वाह,

खूबसूरत अशार कहे हैं

हार्दिक बधाई कबूल करें
"मसले" को शुद्ध रूप "मस्अले" लिख दें तो शेर बाबह्र हो जाये तथा पढ़ने में और आनंद आए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2011 at 10:06am

रावी.. अब आप यही यहाँ .. .

Comment by Prabha Khanna on August 23, 2011 at 7:49am

सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद... जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ... @Saurabh ji, my pen name is Raavi... शुक्रिया :))

Comment by Ravi Prabhakar on August 22, 2011 at 8:04pm

Bahut Khoob!!!!

Comment by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 6:48pm

ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......
हम कहाँ इस से संभाले जायेंगे .......

खुबसूरत ख्याल के लिए साधुवाद प्रभा जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 22, 2011 at 10:56am

मुद्दतों पलते रहे जो साँप , अब ,
आस्तीनों से निकाले जायेंग,

 

बेहद खुबसूरत भाव, पूरी रचना मजबूत ख्यालातों से लबरेज, बगैर मतला के कारण ग़ज़ल कहने में संकोच है, इस अभिव्यक्ति पर बधाई प्रभा जी | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2011 at 10:11am

आपकी इस उम्दा अभिव्यक्ति पर मेरा दिली दाद कुबूल फ़रमायें, मोहतरमा प्रभाजी (रावी..?!). 

हार्दिक साधुवाद.

 

//पीर-परबत ...  हटा ले जायेंगे//

यह शेर कुछ और मशक्कत चाहता है. ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि तथ्य इशारों में कहे गये हैं वो भी पूर्व-उक्तियों की छाया में कहे गये हैं.  परबत हो गयी पीर का पिघलना दुष्यंत कुमार का बहुत ही अहम और मकबूल शे’र है. लाजिमी है, आपके बंद को सुनते ही बरबस उस शे’र का खयाल हो आये.  ऐसे में उचित होता ये कि आप अपने बंद को दुष्यंत के बिम्बों की छाया में पूरी तरह बसा देतीं. चूँकि आपके इस बंद की ज़मीन सवालिया है, सो इसकी खूबसूरती बखूबी निखर कर आती.

यह सिर्फ़ मेरा मानना है. चूँकि रचना के सभी बंद मज़बूत खयालों से भरे हैं, अतः ऐसा कह रहा हूँ.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
22 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
23 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service