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थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा

पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा

देखते है सब यहाँ पर अजनबी अंदाज़ से

पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से

बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में

बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में

काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं

वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं

रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या

है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या

टोक न दे कोई मुझको मेरी इस बेकारी पर

कुछ नहीं है दोष मेरा मेरी इस लाचारी में

चाह नाग बनने की है पर देव बनना है नहीं

राह रोके दूसरों का वो कंकड़ बनना नहीं

आजकल हर घडी बस मेरे सब्र का इन्तेहान है

टूट सकती है कभी भी इस डोर में ना जान है

खौफ का साया यहाँ है हर तरफ फैला हुआ

ज़ुर्रतों का खान था जो छोटा सा थैला हुआ

खो गया जो ये समय तो लौट के ना आएगा

ढल गयी जो ये जवानी उम्र भर पछताएगा

कितनी बार मैं कह चूका हूँ काम कारना है मुझे

एक बार फिर और ऊंचा नाम करना है मुझे

नौकरी खो जाने का दर और ना सह पाऊँगा

कह सका ना जो किसी से घुट के ही मर जाऊंगा

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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