दोहावली......
जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।
अवगुंठन में जीत के, मुस्काती है हार ।।
कुदरत ने सबको दिया, जीने का अधिकार ।
धरती के हर जीव को, बाँटो अपना प्यार ।।
छाया देती साथ जब, होता प्रखर प्रकाश ।
विषम काल में ईश ही , काटे दुख के पाश ।।
दो साँसों के तीर में, सुख -दुख का है नीर ।
भज दाता के नाम को, जब तक चले शरीर ।।
काया की प्राचीर में, साँसें खेलें खेल ।
इसकी हर दीवार पर, इच्छाओं की बेल।।
सुशील सरना / 24-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
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