कुछ याद सम्हाले रखा है,
हमने दर्द को पाले रक्खा है
हँसते चेहरे के आड़ में हमने,
दिल के छालों को रक्खा है
सब कहते है हम हँसते हैं,
हम अपने अंदर ही बसते हैं
अब सबको हम बतलाएं क्या,
हम तनहाई से कैसे बचते है
अब रोना धोना छोड़ दिया,
बस कहना सुनना छोड़ दिया
ना बात कोई अब चुभती है,
हमने तह तक जाना छोड़ दिया
लहज़ा जो हमने बदल लिया,
खुद हीं खुद का कत्ल किया
जो बातों से बह जाया करता था,
उन जज़्बातों को दफन किया
अब दर्द से अपनी यारी है,
हर ज़ख्म में हिस्सेदारी है
उठना गिरना, गिरकर उठना,
बेमतलब की दुनियादारी है
अब पाना क्या और खोना क्या,
और खो जाने पर है रोना क्या?
मुट्ठी में रेत जो थामी थी,
ना ठहरी तो पछताना क्या?
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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