फिर किसी के वास्ते ......
क्यूँ दिलाएं हम यकीं दिल को किसी के वास्ते ।
हो गया दिल आज गमगीं फिर किसी के वास्ते ।
था बसाया घर कभी हमने किसी के ख़्वाब में ,
छोड़ दी हमने ज़मीं वो फिर किसी के वास्ते ।
मर मिटा था दिल कभी जो इक हसीं के नूर पर ,
तोड़ आए दिल वहीं वो फिर किसी के वास्ते ।
दे गया महबूब मेरा मुझ को जीने की सज़ा ,
आज क्यूँ जाने हज़ीं है दिल किसी के वास्ते ।
वो तसव्वुर में हमारे बस गई कुछ इस तरह ,
हो गई रुसवा ज़बीं ये फिर किसी के वास्ते ।
रात भर तड़पा किये हम हुस्न के दीदार को ,
दे गई दिल को दग़ा वो फिर किसी के वास्ते ।
सुशील सरना / 19-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सुशील सरना जी आदाब, आपकी ग़ज़ल की रदीफ़ और क़वाफ़ी क्या हैं समझ नहीं आ रहा है ?
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