1212 1122 1212 22 /112
1
हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं
नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं
2
जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल
ख़याल आते ही उनका सँवरने लगते हैं
3
तेरे बस एक इशारे प ही ओ जान-ए-जाँ
शरारतें मेरे लब ख़ुद ही करने लगते हैं
4
भुलाएँ भी तो उन्हें किस तरह भुलाएँ हम
फ़फोले यादों के जब तब उभरने लगते हैं
5
वो ख़्वाहिश-ए- ग़म-ए दिल का मुदावा करने को
रुत-ए-फ़िराक़ प इल्ज़ाम धरने लगते हैं
6
पकड़ के हाथ वो करते हैं मुतमुइन "निर्मल"
परेशाँ राहों से जब हम गुज़रने लगते हैं
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. रचना बहन सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
मुहतरमा, रचना भाटिया निर्मल, आदाब, अच्छी गज़ल कही, आपने ! किचिंत तीसरे शे'र के ऊला मे, मेरी नज़र में, सुधार की गुंजाइश है ! "तेरे बस एक इशारे पे ही ए जान ए जाँ " बेहतर होता ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online