For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- दर्द हरने लगते हैं

1212  1122  1212    22 /112

1

हम आह जब कभी महफ़िल में भरने लगते हैं

नज़र में भर के वो हर दर्द हरने लगते हैं

2

जुनून-ए-इश्क़ में अब क्या सुनाएँ हाल-ए-दिल

ख़याल आते ही उनका सँवरने लगते हैं

3

तेरे बस एक इशारे प ही ओ जान-ए-जाँ

शरारतें मेरे लब ख़ुद ही करने लगते हैं

4

भुलाएँ भी तो उन्हें किस तरह भुलाएँ हम

फ़फोले यादों के जब तब उभरने लगते हैं 

5

वो ख़्वाहिश-ए- ग़म-ए दिल का मुदावा करने को

रुत-ए-फ़िराक़ प इल्ज़ाम धरने लगते हैं

6

पकड़ के हाथ वो करते हैं मुतमुइन "निर्मल"

परेशाँ राहों से जब हम गुज़रने लगते हैं 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 426

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on June 24, 2022 at 11:43am
आदरणीय सुशील सरना जी हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Sushil Sarna on June 23, 2022 at 4:31pm
वाह आदरणीया जी बहुत खूबसूरत सृजन है । हार्दिक बधाई आदरणीया जी
Comment by Rachna Bhatia on June 22, 2022 at 8:07pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आदरणीय समर कबीर सर् की इस्लाह आने के बाद आवश्यक सुधार कर लेती हूँ। सादर।
Comment by Rachna Bhatia on June 22, 2022 at 8:07pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। आदरणीय समर कबीर सर् की इस्लाह आने के बाद आवश्यक सुधार कर लेती हूँ। सादर।
Comment by Rachna Bhatia on June 22, 2022 at 8:04pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी"‌‌भाई हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 6:17pm

आ. रचना बहन सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on June 22, 2022 at 4:55pm

मुहतरमा, रचना भाटिया निर्मल, आदाब,  अच्छी  गज़ल कही, आपने  ! किचिंत  तीसरे  शे'र के ऊला  मे, मेरी नज़र  में, सुधार की गुंजाइश  है  ! "तेरे बस एक इशारे पे  ही ए जान ए जाँ "  बेहतर  होता  ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
26 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
26 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service