गीत रीते वादों का ......
मैं गीत हूँ रीते वादों का , मैं गीत हूँ बीती रातों का।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
हर मौसम ने उस मौसम की
बरसातों को दहकाया है ,
बीत गया वो मौसम दिल का
लौट के फिर कब आया है ,
जश्न मनाता हूँ मैं अपनी , भीगी हुई मुलाकातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
कैसे अपने स्वप्न मिटा दूँ
कैसे दिल से उसे भुला दूँ ,
मौन हृदय के मन दर्पण से
कैसे उसका बिम्ब हटा दूँ ,
अवचेतन में साँसें लेता , मैं रूठा गीत प्रभातों का ।
जो मीत से कुछ भी कह न सका,वो गीत हूँ मैं बरसातों का ।
सुशील सरना / 27-7-22
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