( 1 )
आ जाये दिल खुश हो जाये
चला जाय तो भादों आवे
चाकर बन पैरों गिर पसरा
क्या सखि साजन ? ना सखि भँवरा !
( 2 )
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल सी वो बोली बोले
समीर बहती है दिल-आँगन
क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !
( 3 )
पोर- पोर में रस भर जावे
चहुँओर मुरलिया सी बाजे
खुशियों का नहीं जग में अंत
क्या सखि साजन ? ना सखि बसंत
मौलिक व अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
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