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मोद-सुमन जो नित्य हृदय के पास रहे
सौरभ का भी जीवन में आवास रहे
मार्ग भले ही छोटा या फिर लम्बा हो
पैरों पर प्रति पल अपने विश्वास रहे
सौहार्द रखे आँगन यदि बारहमासा
मुखड़ा कोई एक न मित्र उदास रहे
उर्वरता न कभी खोये मिटटी अपनी
इतना केवल सबका नित्य प्रयास रहे
नित्य नया यदि ऋतुएँ पुष्प खिलाए तो
और अधिक जीवन की मन में आस रहे
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मौलिक/अप्रकाशित.
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार.सादर
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