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झाड़-फूँक(लघुकथा)

बुनिया उम्र में बड़ी थी,तो क्या?गोरी चिट्टी,छरहरी थी। कमलू से ब्याह दी गई।अब कमलू अपना पाँच बार फेल हुआ मैट्रिक का इम्तहान संभाले, या बुनिया को निहारे? वह नाराज रहने लगी।

एक शाम बुनिया की तबीयत बिगड़ गई। हाथ-पैर पटकती। सिर दीवार से टकराती। घरेलू डॉक्टर की दवाएँ काम न आईं। चतुरी चाची बोलीं, ‘हवा लगी है।’

फिर क्या करें?’ घरवालों ने पूछा।

ओझा बुलाओ। और क्या करोगे?’

ओझा आया। आधी रात तक मर्ज की पड़ताल हुई। फिर नहला-धोकर बुनिया बंद कमरे में भेजी गई। धूप-नैवेद्य से आवाहन-पूजन की प्रक्रिया शुरू हुई। बाहर घरवाले रतजगा पर लगा दिये गए।बुनिया रोई,चिल्लाई। ओझाई जारी रही। सुबह दरवाजा खुला। बुनिया सिर झुकाये शांत खड़ी थी। चेहरा पीला पड़ा था। जाते-जाते ओझा ने उसकी ठुड्डी पकड़कर मुखड़ा ऊपर उठाया,बोला, ‘डर मत। भूत आएगा,तो फिर आऊँगा।’

बुनिया ने सिर झुका लिया। बोली कुछ नहीं।

लजा गई बेचारी! अरे, भूत के ज्यादा प्रबल होने पर तो दो-दो ओझा भी आएंगे।चतुरी चाची ने घरवालों को समझाया।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"   

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Comment by Manan Kumar singh on November 10, 2022 at 9:19am

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी। नमन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 9, 2022 at 6:14pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। अच्छी समसामयिक कथा हुई है। रोग के करकों को न तलाश कर पाखंड को बढ़ावा देने की प्रवृति को बखूबी उकेरा है आपने। हार्दिक बधाई।

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