दुर्घटना ....(लघुकथा)
"निकल लो उस्ताद । बहुत भयंकर दुर्घटना हुई है । लगता है वो शायद मर गया है ।" कल्लू हेल्पर ने ड्राइवर रघु से कहा ।
रघु ने व्यू मिरर से पीछे देखा तो दुर्घटना स्थल पर भीड़ दिखी । रघु ने ट्रक भगाने में भलाई समझी । रघु वहाँ से चला तो घर जा कर रुका।
"कल्लू ये घर पर भीड़ कैसी है ।" रघु ट्रक रोकते हुए बोला ।
भीड़ को चीरते हुए रघु जैसे ही अन्दर पहुंचा, तो देख कर सन्न रह गया । उसका 10 साल का इकलौता बेटा रक्तरंजित बीच आँगन में तड़प रहा था ।
"क्या हुआ, क्या हुआ ।" रोते हुए रघु ने पत्नी से पूछा ।
"क्या बताऊं , एक कार वाला इसे टक्कर मार कर भाग गया । ये तो भला हो पड़ोसी का जो अपने बेटे को उठा कर घर ले आया वरना आज अनर्थ हो जाता। अब जल्दी इसे चिकित्सालय ले चलो । कहीं देर न हो जाए ।"
रघु ने शीघ्रता से अपने बच्चे को उठाया और पड़ोसी की कार पर चिकित्सालय की तरफ चल पड़ा । तमाम रास्ते वो सोचता रहा क्या हुआ होगा उस बच्चे का? मुझे रुक जाना चाहिए था । उसे चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए था । उसने मन ही मन कसम खाई कि अब कभी वो अपने को बचाने के लिए किसी घायल को सड़क पर तड़पताछोड़ कर नहीं भागेगा ।
"रघु उतरो, चिकित्सालय आ गया ।"पड़ोसी ने रघु को झकझोरते हुए कहा । रघु ने बेटे को उठाया और चिकित्सालय में डाक्टर को दिखाने लगे ।
सुशील सरना / 6-11-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
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