For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वप्न अधूरे, भूखा पेट
होने को है, मटियामेट
कड़ी मेहनत, कड़े प्रयास
फिर भी बची न कोई आस।1
अनगिनत ग्रंथ, आंखें फोड़ी
मम जीवन, सम फूटी कौड़ी
सब कुछ किया, व्यर्थ जा रहा
कौन दुःख, मैंने न सहा । 2
देर तक पढ़ना, ऊंचे अंक
बेरोजगारी के, फंसा हूं पंक
कर्म का नियम, बना है निष्फल
हर पैड़ी पर, हुआ हूं असफल ।3
ऊंची-ऊंची, उपाधि अर्जित
अभिनव किया, बहुत कुछ सृजित
फिर भी यहां, नकारा बना हूं
अभाव, दुःखों से, कती सना हूं । 4
घर बैठा हूं, योग्य होकर
कामधंधा नहीं, न बना नौकर
पिल रहा हूं, तिल-तिल करके
परेशान हैं, मुझसे घर के ।5
न बन सका, घर का सहारा
कहीं नहीं जीता, हर जगह हारा
बेशर्म, निठल्ला, ढीठ बना हूं
फूल, फल नहीं, ठूठ तना हूं । 6
अमूल्य जीवन, बना है नर्क
हो चुका अब, कती मैं गर्क
बाकी बचा है, अब तो रोना
रही न आयु, अब क्या होना ।7
बहुत कुछ करने के, सपने संजोए
कांटे ही मिले, आम्र वृक्ष बोए
कर्म-नियम यहां, होता न लागू
हर रस्ता बंद, कहां बच भागूं । 8
पुरुषार्थ से न जीवन बदला
हर दिन होता आया गदला
हंसु-रोऊं, किसी को क्या
मरूं-जीऊं, किसी को क्या । 9
बदत्तर जीवन, जाहिल-गंवारों से
तंग आ चुका; मित्र-प्यारों से
पशुवत जीवन, जीने को मजबूर
हो गया हूं, सबसे ही दूर । 10
संवेदनशीलता, कमजोरी बन गई
सर्वाधिक दुर्गति, मेरी ही हुई
चोंट पर चोंट, मुझे मिली हैं
फूल बना नहीं, कली बिना खिली हैं । 11
एक भी जरूरत, हुई न पूरी
सबने बना ली, मुझसे दूरी
क्या चल रहा, समझ न पाया
किसी ने भी मुझे नहीं बताया । 12
दुःख, कष्ट, हताशा, अभाव
पानी फिर रहा, हर एक चाव
सब देख रहे होते विनाश
कोई महत्त्व नहीं; आस, विश्वास । 13
चिंता, तनाव, बेरोजगारी, परेशानी
मेरी बस है, यही दुःख कहानी
औरों के पचड़े में, कोई नहीं पड़ता
शुरू से ही मैं, रहा हूं सड़ता ।14
भौतिक समृद्धि, देखी न कभी
बदत्तर हालत, है अब भी
परिवार पर, मैं एक भार हूं
क्या हुआ; मेहनती, ईमानदार हूँ । 15
शर्म, हिचक; बहुत होती है
अंतरात्मा बार-बार रोती है
कर-करके, कुछ कर न पाया
टोटे, अभाव का, न छूटा साया । 16
बाहर जाने में भी, आती है शर्म
जो सोचा था, निकला सब भ्रम
क्या हो रहा, मेरे संग-साथ
सब तरह से, हो चुका अनाथ ।17
अयोग्य, नकारा, बैठे पदों पर
मेरा जीवन सम, गधे लदों पर
रोने के सिवाय, कुछ कर न पाता
मेरा हल मुझे, कोई नहीं बताता । 18
सुनने पड़ते हैं, सबके ताने
बुरा कहते हैं; जाने, अनजाने
जीवन बस, बना एक बोझ
रहे दौड़ता, जैसे कोई रोझ । 19
ऊंची पढ़ाई, ऊंची शिक्षा
चल रहा जीवन, मांगकर भिक्षा
मुझसे अच्छे हैं, अनपढ़ व गंवार
तरक्की के खुले, उन हेतु ही द्वार । 20
जीवन जा चुका, आधे से ज्यादा
बाहरी-भीतरी कोई, हुआ न फायदा
रोज कर रहा, हताशा रेचन
मारक विष से, हुआ है सेंचन । 21
साहित्य रच दिया, रच रहा हूं
समय ने बहाया, मैं बहा हूं
कर्म का फल मुझे, मिला न कोई
समान बना हूं, उतरी हुई लोई । 22
योग्यता मेरी, व्यर्थ में जाती
क्या करे कोई, गोती-नाती
व्यथा अपनी, कहूं मैं किससे
थोड़ी राहत तो, मिल जाती इससे । 23
सबको अपनी-अपनी ही पड़ी है
मेरी हर एक, सांस उखड़ी है
दुःख के सिवाय, मिला न कुछ
यह जीवन तो, तुच्छ से तुच्छ । 24
हर रोज कई बार, आता है रोना
पाया कुछ नहीं, चल रहा खोना
चल रही है, यह लीला कैसी
दुर्गति हुई न, किसी की ऐसी । 25
लगता है सब, अंधाधुंध चलता
मेहनती बर्बाद, बस कपटी फलता
पुरुषार्थ ने, कर दिया बर्बाद
मरण समीप है, न हुआ आबाद । 26
कर्मयेाग मेरा, चाट रहा धूल
बर्बाद हो चुका, मैं बिल्कुल
क्या करूँ, कुछ समझ न आता
कोई भी मुझे, नहीं बताता । 27
न अध्यात्म, न भौतिक समृद्धि
तनाव, कुंठा की; होती आई वृद्धि
पिल रहा हूँ, बैल के समान
बढ़ी हैं उलझन, नहीं समाधान । 28
विधायकता को, क्या मैं चाटूं
किसके संग, दुःखों को बांटू
जन्म लेना, बेकार चला गया
भीतर तक, मुझे हिला गया । 29
कोई भी गुण, काम नहीं आया
अभाव टोटे का; सदा रहा साया
खेल रहा यह, लीला कौन
छोड़ दिया बोलना, अब हूं मौन । 30
होता क्या है, सिर्फ बताने से
सबको मतलब, सिर्फ पाने से
सब हैं अपनी, मस्ती में मस्त
मेरा सूर्य हो चुका है अस्त । 31
इतनी पीड़ा, क्या जिक्र करूं
परे समझ से, जीऊं या मरूं
हो गया हूं, मैं कती अकेला
खुब देखा यह, जग का मेला । 32
जग नक्कारखाना, मैं तूती हूं
पैरों की बस, मैं जूती हूं
कितना रोऊं, कौन सुनता है
ज्ञान, अज्ञान घर, सिर धुनता है । 33
मेहनत कड़ी, मिला नहीं फल
किसी समस्या का, हुआ न हल
रोना ही शायद, रह गया बाकी
दुःख सहने को, जी सकूं ताकि । 34
दोष दूं किसको, मैं ही बड़ा दोषी
सबके प्रति ही, की सरफरोसी
भुगत रहा हूं, इसका मैं दंड
टूट चुका हूं, हो चुका खंड-खंड । 35
पागल बना मैं, स्याना होकर
पीछे पड़े सब, हाथों को धोकर
मेरे सिवाय, सब ही सयाने हैं
जूत अपमान के, अभी खाने हैं । 36
बात-बात पर रोना आता
अपनी पीड़ा स्वयं बताता
फूर्सत नहीं सुनने की किसी को
दुर्भाग्य शायद, कहते हैं इसी को । 37
बहुत कुछ करने की ठानी थी
अब लगता शायद नादानी थी
जो कुछ होता, हो जाता है
पता नहीं कोई, क्या पाता है । 38
कर्मफल शायद, हो सकता सत्य
पुरुषार्थ क्यों, हो रहा असत्य
कहते हैं यह, सबसे बली है
मेरी करने में उम्र ढली है । 39
पीड़ा समझे, कौन भीतर की
माने हुए, अपने मित्र की
घुट-घुट करके, रहो यहां मरते
ढोर समान, घास-फूस चरते । 40
पैरों पर मित्र, खड़े हो जाते
मदद करने को, फिर नहीं आते
स्वार्थ साधने को, तत्पर रहते थे
सबसे प्यारा, खुद को कहते थे । 41
मुझे लगता है, सब अनिश्चित
स्वार्थवश हैं, घृणा या प्रीत
जो होना हो, हो जाता है
असहाय, मुझ सम पाता है । 42
मुफ्त के टुकड़े, तोड़ रहा हूं
खुद अपना सिर, फोड़ रहा हूं
हाथ-पैर पटकूं, करूं प्रयास
असफल पुरुषार्थ, कुछ नहीं आस । 43
स्वयं हो रहा या कोई करता है
कोई बर्बाद, कोई व्यर्थ उभरता है
गरीब, असहाय से; किसने जाना
अबोध समृद्ध व्याख्या, यही बस माना । 44
जो समझे यहां, पीड़ा मेरी
वही मित्र है, बिना किसी देरी
इस कसौटी पर, कोई नहीं उतरा
हर दिन बढ़ता आया है खतरा । 45
न मित्र हुआ कोई, न हालत सुधरी
नीयत सबकी, विकारों से है भरी
मेरा दुःख इससे, बढ़ गया कई गुना
सब कर देते, इसे यहां अनसुना । 46
सच्चा मित्र, यदि मिल जाता
तो इतना दुःख, मैं नहीं पाता
बताने मात्र से, हो जाता हल्का
भारीपन चला जाए, जैसे जल का । 47
जीवन व्यर्थ, हो रहा व्यतीत
स्नेह मिला नहीं, नहीं कोई प्रीत
सब कुछ होते, कुछ भी नहीं है
भलि-बुरी मुझे, सबने कही । 48
एक-एक पल यहां, वर्ष के समान
हर दिशा में, मुझे मिले व्यवधान
व्यक्ति और व्यवस्था, दोनों ही विरोधी
रोक रहे मुझे, जाने से संबोधि । 49
मेरी पीड़ा यहां, कोई न जाने
सभी बने यहां, बहुत बड़े सयाने
सीमा होती है, दमन करने की
घड़ी रही न; मेरी उभरने की | 50
आधी चली गई, बची है आधी
बढती जाती है, आधि-व्याधि
थक चुका हूं, सब कुछ करके
मुक्ति मिलेगी, स्यात मुझे मरके । 51

रचना "मौलिक व अप्रकाशित" है।

Views: 134

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
58 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश जी। तुकांत में हुई असावधानी की आगे के अभ्यासों मे पुनरावृति न हो ऐसी…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक जी   उत्साहवर्धन करती इस प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार। आपके कहे से सहमत हूँ कि…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार.…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, अच्छा प्रयास है आपका घनाक्षरी पर. भाव चित्रानुरूप सुन्दर हैं किन्तु…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है मेरा यह प्रयास ठीक रहा. मेरा प्रयास…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई| तुकांत की दृष्टि से सभी पदों में  पोतियाँ के…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र से भाव लेकर सुन्दर घनाक्षरी रची है आपने.…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी,  छंद की हर पंक्ति चित्र के अनुरूप है, हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए |"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभभाई जी,  प्रशंसा सार्थक टिप्पणी और सुझाव के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service