2122 2122 2122 212
कौन सी मंज़िल पे ये रस्ता नया ले जाएगा।
मुझको लगता है ये मेरा हौसला ले जाएगा।
ऐ फरेबी वक़्त मुझको हर सितम तेरा कुबूल,
मेरी साँसों से अधिक तू मेरा क्या ले जाएगा।
ये अँधेरा युग तो इक दिन बीत जाएगा मगर,
कीमती मौसम हमारी उम्र का ले जाएगा।
इससे पहले वक़्त अपनी चाल चल दे डाकिये,
उससे कहना मेरे होने का पता ले जाएगा।
टूट जाएगा मेरी उम्मीद का सच जानकर,
मेरी ग़ज़लों को कुरेदा तो खला ले जाएगा।
रास्ता उसको यकीनन साफ आएगा नज़र,
मेरे लिक्खे आखिरी खत का धुँआ ले जाएगा।
अब सदा मेरी तो मालिक तक नहीं जाती मगर,
कौन है जो मेरे ग़म का तर्जुमा ले जाएगा?
चिलमिलाती धूप,उड़ती धूप और बहके कदम,
किस नगर में हमको अब ये रास्ता ले जाएगा।
तुम सुना देना किताबों में पढ़ी बातें उसे,
और ये 'अहसास' उसका ही दिया(लिखा) ले जाएगा।
मौलिक और अप्रकाशित
।।
Comment
आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
/चिलचिलाती धूप,उड़ती धूप और बहके कदम,/
में उड़ती धूल कर ले।
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