221--1221--1221--122
1
आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते
है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते
2
है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते
गर रोग है तो इसकी दवा क्यों नहीं देते
3
तुम चाँद सितारों के तले उनको बुला कर
दिल में बसे चेहरे को दिखा क्यों नहीं देते
4
तूफ़ान से लड़ने का तुम्हें शौक़ है इतना
तो चप्पू समंदर में गिरा क्यों नहीं देते
5
अक्सर जो तुम्हें ठगते है छल और कपट से
इक बार उन्हें तुम भी दग़ा क्यों नहीं देते
6
सच्चाई अगर मुल्क में ज़िंदा है अज़ीज़ो
इन्साफ़ को फिर लोग सदा क्यों नहीं देते
7
क़ुदरत की तुम्हें फ़िक्र अगर इतनी है 'निर्मल
तो धरती को ख़ुश रंग बना क्यों नहीं देते
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
दिल्ली
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर भाई नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. रचना बहन सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय तपन दुबे जी हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
बहुत खूब रचना जी, बड़ी अच्छी गजल हुई है। बधाई।
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