2122 1212 22
1
सोये जज़्बे जगा रहा है कोई
दिल प हौले से छा रहा है कोई
2
नज़रों से मय पिला रहा है कोई
मुझको मुझसे चुरा रहा है कोई
3
चाँद तारो न उम्र भर जाना
मेरे घर आज आ रहा है कोई
4
चन्दा कुछ देर ओढ़ ले बदरी
छत प मुझको बुला रहा है कोई
5
मुस्कुराहट सजा के होटों पर
इश्क करना सिखा रहा है कोई
6
लौटना अपना मुस्तरद*करके
मेरा ओहदा बढ़ा रहा है कोई
अस्वीकृत
7
शे'र लिखकर उदास काग़ज़ पर
ग़म ग़लत करता जा रहा है कोई
8
नाम दिल पर उकेर कर "निर्मल"
मुझको ग़ाफ़िल बना रहा है कोई
मौलिक व अप्रकाशित
रचना निर्मल
Comment
आद0 रचना भाटिया जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। बधाई
आदरणीया रचना जी अच्छी ग़ज़ल हुई...बधाई
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर भाई नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
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