रूठे हो बहनों से या फिर, मद में अपने चूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।
किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।
हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।
लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।
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कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
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हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का खेल बहुत।
हम में तुम में चंचलता का, माता कहती है मेल बहुत।।
रूप बदलने का कौशल है, माना बढ़चढ़ पास तुम्हारे।
लेकिन समझे कभी नहीं हो, मन भावों को तनिक हमारे।।
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मनोविज्ञानी होना था पर, बन बैठे मजदूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
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यूँ तो हमको नित्य चिढ़ाते, विविध रूप का बदल पजामा।
छुट्टी कर हर मास कहाँ तुम, चले अकेले चन्दा मामा।।
डपट सुनो जब नभ नाना की, हँस देते हो यूँ खिसियाकर।
रगड़ चाँदनी में फिर तन को, धीरे-धीरे सम्मुख आकर।।
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केवल एक निशा में हम को , रूप दिखा भरपूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
मेघों की लहरों पर तिरते, बनकर सुन्दर नाव तुम्हीं हो।
किन्तु प्रशंसा पाकर थोड़ा, बढ़चढ़ खाते भाव तुम्हीं हो।।
घटते बढ़ते तुम्हें देखने, पलपल रहती अँखियाँ प्यासी।
जब तुम दिखते नहीं एक दिन, हमें घेरती बहुत उदासी।।
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एक निशा को सहज चुराता, कौन तुम्हारा नूर बताओ।।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
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कभी मिठाई खील बताशे, तुम से हम ने नहीं माँगने।
यही सोचकर दूर हमेशा, लगते हो क्या कहो भागने।।
चन्दा मामा! आओ घर भी, झिलमिल तारों साथ कभी।
कुछ तारों को मान खिलौना, तुम रखो हमारे हाथ कभी।।
*
नहीं निभाया कभी एक भी, क्यों तुमने दस्तूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ . भाई समर जी सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा बाल गीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।
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