दिखता है हर ओर यहाँ तो केवल दुख का बौर।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
घाव कुरेदे पल पल दुनिया कर बैठी नासूर।
इस कारण ही घर कर बैठी पीर यहाँ भरपूर।।
औषध कोई काम न करती मत बोलो अब और।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
शीतल छाँव नहीं है वन में दावानल की आग।
तानसेन की सुता न कोई गाती बादल राग।।
बन्द झरोखों को क्या खोलें उमस भरा जब दौर।।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।
*
अब तो करती कहीं न दिखती, सरसों पीले हाथ।
बाँध मुरेठा चना नाचता, अब ना अलसी साथ।।
कलियों को खिलने से पहले, पतझड़ करता कौर।
इस जीवन में कहाँ मिलेगा, हमको सुख का ठौर।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने , बधाई स्वीकार करें I
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