कोई आई और मुझे दीवाना बना कर चली गयी
साँसों में मेरी घुल गई
आँखों में मेरी घर कर गयी
दिल के आंगन में आशियाँ बना के बस गयी |
उसे ढूँढूं कहाँ में यूँ गलियों में
वोह तो हैं फूल में या हैं कलियों में
ऐसी सूरत है देखि मैंने ,सदियों में ...
बूँद गिरती है जैसे की नदियों में .....
कल ख्वाब में मैंने देखि उसकी आंखें
तब आई मुझको नींद कहीं जाके ......
जैसे की वोह घटा थी जो बरस रही थी दिल में
लग रही थी जैसे कोई रात हो वोह दिन में .....
एहसास उसका यारों बड़ा ही खास था
दूर था में उससे पर लग रहा था पास था
जो जुल्फें उसकी थी वोह थी रब का क्या कमाल
जैसे सावन के काले घने बदल जो तन -मन भीगोदे
जैसे ममता का आँचल जो सब कुछ भुला दे
उसके होठों की लाली के आगे गुलाब भी मुरझा जाये
उसकी जगमगाहट को देख के चाँद भी शर्मा जाये
नाचती मोरनी सी अदाएं , कुदरत सी शोखी
मासूमियत नन्ही कलि की जम्हाई जैसी
और महक बरसात में मिटटी की खुशबु जैसी ......
उसकी तारीफ में यह भी था पानी को गीला करने जैसा
आहना को सूरज बताने जैसा
या साहिल को किनारा बताने जैसा
, ज़िन्दगी भर उसका ज़िक्र करू
फिर भी कम होगा , उसके बिना तो सागर में पानी भी कम होगा .
क्या कभी वोह हमारा होगा ? .............................
Comment
bhav hain, gathan main prayas jaroori hai.
रोहित जी आपको पढ़कर अच्छा लगा , प्रयास करते रहिये और बढ़िया लिख सकते है |
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