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वही इक ख्वाब तो अपनी निगाहों ने भी देखा था।
हमारे पास कोशिश थी,तुम्हारे पास पैसा था।
तुम्हारे हक़ में आया फैसला तो कैसा अचरज हो,
मेरी आँखों में मिन्नत थी, तेरे कदमों का रुतबा था।
कहीं से भी नहीं लगता तेरी हस्ती से अब संगदिल,
यही वो शख्स है मैं जिसके ख़्वाबों में भी रहता था।
तेरा रुख ऐसा होगा ये अगर महसूस हो जाता,
कभी भी मैं नहीं कहता तू मुझसे प्यार करता था।
रिहाई जाने कब होगी मेरी अनचाही दुनिया से,
फलक पर पंछियों का झुंड मैंने उड़ते देखा था।
सिमट कर रह गई है ज़िन्दगी छोटे से कमरे में,
खुशी को ढूंढने घर से मैं बरसों पहले निकला था।
किसी अंजाम तक भी ये कहानी क्यों नहीं जाती,
अगर मुश्किल लिखी थी तो विधाता हल भी लिखना था।
यकीनन खूबसूरत थे तेरी चाहत के कुछ लम्हें,
मगर मैं उन दिनों में भी बड़ा बेचैन रहता था।
किसी भी शेर को पढ़कर लगे तुमको कि सच्चा है,
तो आकर बोल देना सब मेरी नज़रों का धोखा था।
मेरी बेटी मेरे सपने से अक्सर जाग जाती है
रिजक के वास्ते मैनें यहाँ क्या क्या गवाया था
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम जी
सादर
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