2122 2122 2122 212
हमने तो मुद्दत से उनका ख्वाब भी देखा नहीं
लग रहा है इस दिए में तेल अब ज्यादा नहीं
ज़िन्दगी का क्या भरोसा डगमगाते दौर में
आप तक ले जाये ऐसा तो कोई रस्ता नहीं
शायरी भी बोझ दिल का बन गयी है दोस्तो
वो कोई कैसे पढ़ेगा जो मैं लिख सकता नहीं
तुम अगर आ जाओ अब भी तो ही क्या हो जाएगा
मैं नहीं,तुम भी नहीं वो,वक़्त भी वैसा नहीं
एक सूरत लेकिन अब भी है मेरे उद्धार की
पर सिवा तेरे किसी में ध्यान भी लगता नहीं
टूटे हाथों से सजाऊँ कैसे घर के फर्श को
तुमने बरसों से कदम घर में मेरे रक्खा नहीं
आखिरी दीदार की दिल में तमन्ना है सनम
आँखों में उम्मीद का लेकिन कोई कतरा नहीं
तुझसे दूरी,खुद से दूरी,घर से दूरी,कितने ग़म
ऐसी हालत में तो मर जाने में भी खतरा नहीं
क्या बताएं,क्या सुनाएं,क्या लिखें,किससे कहें
बहरों की दुनिया मे ज्यादा बोलना अच्छा नहीं
चल निकल कर भाग दिल से मेरे उम्मीदे कल
मेरा बीता कल तो मुझसे आज तक सुलझा नहीं
हाँ यकीनन वो मुझे पहचान तो लेंगें मगर
पर कहेगें ये पड़ोसी अब तलक सुधरा नहीं
मेरे हाथों पे मेरा बस ही नहीं मैं क्या करूँ
वरना इतनी देर रातों में ग़ज़ल लिखता नहीं
तुम मिलों तो उससे कह देना ज़रा में दास्तां
आखिरी घड़ियों में है वो वक़्त अब ज्यादा नहीं
मौलिक औऱ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी, आदरणीय नीलेश जी,आदरणीय सौरभ पांडेय जी इस ग़ज़ल पर आप तीनों की उपस्थिति देखकर बहुत हर्ष हुआ obo के शुरुआती दिन याद आ गए जितना सीखा आप लोगों के सानिध्य में ही सीखा ग़ज़ल पर आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत सुधार की कोशिश जारी रहेगी
देर से उत्तर देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
सादर
भाई मनोज अहसास जी, आपकी प्रस्तुति का हार्दिक धन्यवाद।
गजल कही जाती है, लिखते तो हम आप हैं।
यह गजल कुछ और समय चाहती है।
शुभ-शुभ
आ. मनोज जी,
मतले के दोनों मिसरों में अंतर्संबंध कम है ..
डगमगाते दौर... यह पहली बार पढ़ने में आया है .. आश्वस्त नहीं हूँ .
कैसे कोई पढ़ सकेगा मैं जो लिख पाया नहीं
.
अब अगर तुम आ भी जाओ तो भी क्या हो जाएगा
मैं नहीं मैं तुम नहीं तुम वक़्त पहले सा नहीं..
इसी थीम पर चिन्तन करते रहिये.
ग़ज़ल के लिए बधाई
आदरणीय मनोज अहसास जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.
प्रचलित हिंदी और देवनागरी में 'ज्यादा' शब्द रूप घुल मिल गया है. अब तो ये स्थिति है कि अगर जियादः लिखेंगे तो साथ में अर्थ भी देने की नौबत आ जाएगी...बस यह मेरा विचार है. बाकी जैसा आपको उचित लगे.
सादर ...
आदरणीय मनोज अहसास जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।
मतले में सहीह लफ़्ज़ जियाद: है जिसका वज़्न 122 होता है।
4 में अगर उचित लगे तो "अब तुम्हारे लौटकर आने से क्या हो जाएगा" भी कर सकते हैं
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